आनंदमोहन की रिहाई के मामले पर बिहार सरकार के फैसले को चुनौती, SC 8 मई को करेगा सुनवाई
नई दिल्ली: बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की जेल से रिहाई के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पर सहमति दे दी है.दिवंगत आईएएस जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी की ओर से याचिका दायर पर सुप्रीम कोर्ट 8 मई को सुनवाई करेगा.
आनंद मोहन सिंह को 27 अप्रैल को बिहार की सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया. उन्हें साल 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी पाया गया था.
आनंद मोहन सिंह को साल 2007 में मौत की सज़ा सुनाई गई थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था.
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फैसले से गलत संदेश
दिवंगत डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि बिहार सरकार के इस फ़ैसले से समाज में ग़लत सन्देश जाएगा और अपराधियों को प्रोत्साहन मिलेगा.
याचिका में उमा कृष्णैया का कहना है कि उन्होंने अपने पति के हत्यारे को वापस जेल भेजने के लिए बिहार सरकार के साथ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की है.
याचिका में कहा गया है कि सरकार का एक दोषी को इस तरह रिहा करने के लिए जेल मैन्युअल में किया गया बदलाव गैरकानूनी है.
याचिका में बिहार सरकार के आदेश और संशोधन को रद्द करते हुए आनंद मोहन को फिर से जेल भेजने की मांग की गयी है.
जेल मैनुअल में बदलाव को चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी याचिका में बिहार सरकार द्वारा हाल ही में जेल मैन्युअल में किए गए संशोधन को चुनौती दी गयी है. इस संशोधन के जरिए ही आनंदमोहन की रिहाई का रास्ता तैयार हुआ था.
पिछले दिनों ही नीतीश कुमार सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया गया था, जिसके बाद आनंद मोहन की जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो गया. कहा जा रहा है कि रिहाई के बाद आनंदमोहन अपने बेटे आरजेडी विधायक चेतन आनंद की शादी की तैयारियों में जुटे हैं.
दूसरी तरफ बिहार सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ पटना हाईकोर्ट में भी पीआईएल दायर कर चुनौती दी गई हैं.
आईएएस अधिकारी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन सिंह की रिहाई को लेकर नीतीश कुमार सरकार लगातार आलोचनाओं का सामना कर रही.हालांकि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस फैसले पर सफाई देते हुए दावा किया था कि बिहार सरकार का ये फैसला केंद्र के 'मॉडल जेल मैनुअल 2016' पर आधारित है.
क्या है 10 अप्रैल की अधिसूचना
बिहार सरकार की 10 अप्रैल को जारी की गई अधिसूचना के ज़रिये राज्य सरकार ने बिहार प्रिज़न मैन्युअल में एक ऐसा संशोधन किया जिसे किए बिना आनंद मोहन सिंह को रिहा नहीं किया जा सकता था.
10 अप्रैल को जारी अधिसूचना में बिहार के गृह विभाग ने "काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या" को बिहार प्रिज़न मैन्युअल 2012 के सेक्शन 481(i)(a) से हटाने की घोषणा की.
साल 2012 में जारी किए गए बिहार प्रिज़न मैन्युअल के सेक्शन 481(i)(a) में बलात्कार और क़त्ल जैसे जघन्य अपराधों के साथ-साथ "काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या" को भी शामिल किया गया था.
इस धारा के तहत जिन अपराधों को लाया गया उनमें दोषी पाए गए और आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे दोषियों की रिहाई का कोई प्रावधान नहीं था. ये प्रावधान उस सूरत में भी नहीं था जिसमें दोषी ने जेल में 20 साल की सज़ा भुगत ली हो.
स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो बिहार सरकार ने 10 अप्रैल की अधिसूचना से जेल मैन्युअल में एक वाक्य को हटाकर आनंद मोहन सिंह को जेल से रिहा करने का रास्ता साफ कर दिया.
इस संशोधन के बाद ही बिहार सरकार ने आनंद मोहन सिंह समेत 27 सज़ायाफ़्ता लोगों को रिहा करने की कार्यवाही शुरू की.