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सामान्य इरादे से किए गए हमले से पीड़ित को हल्की चोटें लगी है, इस आधार पर किसी आरोपी को सजा कम नहीं किया जा सकता: SC

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक राज्य की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हाई कोर्ट ने आरोपी की सजा को इस आधार पर कम किया कि उसने जो चोटें पहुंचाई थीं, वे सह-आरोपी द्वारा पहुंचाई गई चोटों की तुलना में कम गंभीर थीं.

Written By Satyam Kumar | Published : January 18, 2025 5:55 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि समान इरादे से किए गए चोटों की गंभीरता को देखते हुए कठोर सजा को हल्की सजा में नहीं बदला जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रहा था. हाई कोर्ट ने आरोपी संख्या 2 की सजा को इस आधार पर कम किया कि उसने जो चोटें पहुंचाई थीं, वे सह-आरोपी द्वारा पहुंचाई गई चोटों की तुलना में कम गंभीर थीं.

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कर्नाटक राज्य की अपील पर सुनवाई की, जिसमें उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें आरोपी संख्या 2 की सजा को भारतीय दंड संहिता की धारा 326 (घातक हथियार से गंभीर चोट पहुंचाना) से धारा 324 (घातक हथियार से चोट पहुंचाना) में बदला गया था. राज्य का कहना था कि चोटों की गंभीरता को देखते हुए सजा को हल्के अपराध में नहीं बदला जा सकता.

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राज्य की दलील को मानते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने आरोपी संख्या 2 की सजा को धारा 326 से धारा 324 में बदलकर गलती की. अदालत ने कहा कि दोनों आरोपियों ने एक साथ पीड़ित पिता-पुत्र पर हमला किया था. आरोपी संख्या 2 चॉपर से और आरोपी संख्या 3 चाकू से लैस था. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि केवल इस कारण से कि आरोपी संख्या 2 द्वारा दी गई चोटें कम गंभीर थीं, उसकी सजा को धारा 326 से धारा 324 में नहीं बदला जा सकता.

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वहीं, आरोपी ने तर्क किया कि उच्च न्यायालय ने सही ढंग से उसकी सजा को धारा 326 से धारा 324 में बदला, क्योंकि उसके द्वारा किए गए हमले से पीड़ित को आई चोटें सह-आरोपी की तुलना में कम गंभीर थीं, इसलिए उसकी सजा को सही तरीके से बदला गया.

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अदालत ने यह भी कहा कि अगर चोटें केवल हाथ पर ही आई हैं, तो भी यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि आरोपी संख्या 2 घटनास्थल पर आरोपी संख्या 3 का सहायक था. अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 34 का प्रावधान इस मामले में स्पष्ट रूप से लागू होता है.

अतः राज्य की अपील को स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी संख्या 2 को धारा 326 और धारा 34 के तहत दोषी ठहराते हुए उसे हाई कोर्ट द्वारा आरोपी संख्या 3 को दी गई सजा के समान दो साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई. इसके साथ ही, उसे ₹75,000 का जुर्माना भी भरना होगा. अदालत ने उसे चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है.

केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम बट्टेगौड़ा एवं अन्य (State of Karnataka vs BATTEGOWDA & ORS)