नए साल में पहले कार्यदिवस पर सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा नोटबंदी पर फैसला
नई दिल्ली: देश में लागू की गयी नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ आगामी 2 जनवरी को फैसला सुनाएगी. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य पीठ ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद 7 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की जाने वाली केस सूची के अनुसार, संविधान पीठ के सभी पांच जज अपने फैसले को लेकर एकमत है. संविधान पीठ के सभी जजों की तरफ से जस्टिस बी आर गवई फैसला सुनाएंगे. गौरतलब है कि इस पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एस अब्दुल नजीर फैसले के एक दिन बाद ही 3 जनवरी को सेवानिवृत्त होंगे.
इन बिंदुओं पर सुनाएगी फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को लेकर कई बिंदुओं पर सुनवाई की है जिसमें खासतौर से 8 नवंबर 2016 को जारी की गयी अधिसूचना की वैधता को लेकर है. सुप्रीम कोर्ट यह बताएगा कि अधिसूचना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) और धारा 7, 17, 23, 24, 29 और 42 के तहत माननीय है और क्या ये अधिसूचना संविधान के प्रावधान अनुच्छेद 300 (ए) का उल्लंघन करती है.
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सुप्रीम कोर्ट इस बिंदु पर भी अपना फैसला सुनाएगा कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत वैध रूप से जारी की गई है और क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत वैध है या नहीं. इसके साथ ही क्या बैंक से नकदी निकालने की भी सीमा है. क्या बैंक खातों में जमा धन का कानून में कोई आधार नहीं है और यह अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है सहित कई बिंदुओं पर अपना फैसला सुनाएगी.
सुनवाई में शामिल जज और वकील
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 24 नवंबर से इस मामले विस्तृत सुनवाई शुरू की थी. जस्टिस नज़ीर के अलावा संविधान पीठ के अन्य 4 सदस्यों में जस्टिस बी आर. गवई, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की और से सीनियर एडवोकेट पी चिदंबरम और श्याम दीवान जैसे वरिष्ठ वकीलों ने पैरवी की. वही केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और आरबीआई की तरफ से वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता पैरवी की.
8 नवंबर 2016 की तारीख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह साल पहले 8 नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी का ऐलान किया था. 8—9 नवंबर की आधी रात से लागू की किए गए नोटबंदी के फैसले के बाद देश में प्रचलित 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए गए थे. इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में यह सवाल किया गया कि फैसला बिना किसी पूर्व प्रयासों के लिया गया.
नोटबंदी में 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करने के खिलाफ साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गयी थी. इनमें से एक याचिका विवेक नारायण शर्मा ने दायर की थी जिसमें 8 नवंबर 2016 की अधिसूचना को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर 2016 को इस मामले को सुनवाई के लिए संविधान पीठ भेज दिया था.
सरकार और आरबीआई का तर्क
सरकार ने नोटबंदी के फैसले के पक्ष में तर्क देते हुए इसे एक आर्थिक नीतिगत मामला बताते हुए न्यायालय के हस्तक्षेप से बाहर बताया. सरकार ने इस फैसले को नकली मुद्रा, काले धन और आतंक के वित्तपोषण की बुराइयों को रोकने के लिए लिया गया फैसला बताया.
भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से कहा गया कि उसने केंद्र सरकार द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर निर्णय लिया.
फैसला रखा था सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और आरबीआई को निर्देश दिया था कि वे सरकार के नोटबंदी के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड 10 दिसंबर तक पेश करें. वही भारत सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने सीलबंद लिफाफे में रिकॉर्ड पेश करने की बात कही थी.