देश भर के मंदिर प्रसाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की मांग, इन वजहों से सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से किया इंकार
देश भर में मंदिरों में वितरित किए जाने वाले प्रसाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए रेगुलेशन की मांग करने वाली जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि 26/11 (संविधान दिवस) के मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि कार्यपालिका अपनी सीमाओं के भीतर काम कर रही है, इसलिए न्यायपालिका को भी कार्यपालिका में दखल नहीं देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने मंदिरों में प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर रेगुलेशन जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे सेपरेशन ऑफ पावर (Separation Of Power) के हवाले से कहा कि रेगुलेशन आदि का कार्य सरकार की नीतियों के अंतर्गत आती है. हालांकि सर्वोच्च अदालत ने उचित प्राधिकरण के पास अपनी मांग को लेकर जाने की इजाजत दे दी है.
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पीठ ने गुणवत्ता को लेकर कहा कि इसे केवल मंदिर के प्रसाद तक ही क्यों सीमित रखा जाए, होटलों एवं अन्य खाद्य प्रतिष्ठानों पर लागू किया जा सकता है. इस याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा कि मंदिरों के पास इन गुणवत्ता को चेक करने के लिए समिति नहीं है, जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
मंदिर के प्रसाद में विनियमन का अनुरोध करने वाली एक याचिका में कहा गया है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के पास शक्तियां हैं, लेकिन इसके दिशा-निर्देशों में प्रभावशीलता की कमी है. पीठ ने कहा कि मंदिर से संबंधित व्यक्तिगत मामलों वाले व्यक्ति समाधान के लिए संबंधित उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से विभिन्न मंदिरों में दिए जानेवाले भोजन या प्रसाद खाने से लोगों के बीमार पड़ने की घटनाओं के बढ़ने का दावा किया था. याचिका में सर्वोच्च अदालत से मांग की गई कि अदालत मंदिर के प्रसाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करें.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया है.