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'भूमि के आवंटन में किया मंत्री पद का दुरूपयोग', SC ने आजम खान के जौहर ट्रस्ट की याचिका खारिज करते हुए कहा

सुप्रीम कोर्ट

सीजेआई ने कहा कि रिकार्ड पर रखे गए सामग्री से स्पष्ट प्रतीत होता है कि आजम खान उस समय कैबिनेट मंत्री थे जब जौहर ट्रस्ट को जमीन आवंटित किया गया.. ये जानते हुए कि वे उसके आजीवन सदस्यता उनके पास है.

Written By Satyam Kumar | Updated : October 14, 2024 5:33 PM IST

आज सुप्रीम कोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की कार्यकारी समिति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि जौहर यूनिवर्सिटी को आवंटित जमीन में मंत्री पद का दुरूपयोग दिखाई पड़ता है. बता दें कि यूनिवर्सिटी को जमीन आवंटित होने के समय आजम खान राज्य के कैबिनेट मंत्री थे. मामले में जौहर ट्रस्ट ने यूपी सरकार के यूनिवर्सिटी बनाने को आवंटित हुए 400 एकड़ को पुन: अपने कब्जे में लेने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

भूमि आवंटन में किया गया मंत्री पद का दुरूपयोग

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हुए.

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सीजेआई ने कहा कि रिकार्ड पर रखे गए सामग्री से स्पष्ट प्रतीत होता है कि आजम खान उस समय कैबिनेट मंत्री थे जब जौहर ट्रस्ट को जमीन आवंटित किया गया.. ये जानते हुए कि वे उसके आजीवन सदस्यता उनके पास है. (साल 2015 में जौहर ट्रस्ट को जमीन आवंटित किए जाने वक्त आजम खान शहरी मंत्रालय और अल्पसंख्यक विकास मंत्री थे.) सीजेआई ने आगे कहा, जब कोई जमीन का पट्टा किसी सरकारी संस्थान के लिए आवंटित होनी थी, तो उसे कैसे निजी ट्रस्ट को दिया जा सकता है?

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याचिका में जौहर यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे 300 छात्रों के भविष्य के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी राज्य के शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे इन छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था किसी अन्य शिक्षण संस्थान में करें. जौहर ट्रस्ट की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल अदालत के समक्ष पेश हुए.

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कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि 2023 में पट्टे को रद्द करने का निर्णय बिना कोई कारण बताए लिया गया था. उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने मुझे नोटिस जारी किया होता और कारण बताए होते, तो मैं इसका जवाब दे सकता था. क्योंकि, आखिरकार, मामला कैबिनेट के पास गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री ने (भूमि आवंटन पर) निर्णय लिया था. ऐसा नहीं है कि मैंने कोई निर्णय लिया.

सरकार का दावा भूमि शोध संस्थान के लिए थी आवंटित

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भूमि लीज रद्द किये जाने के खिलाफ मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की कार्यकारी समिति की याचिका खारिज कर दी थी. राज्य सरकार ने लीज शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए न्यास को आवंटित 3.24 एकड़ भूखंड का पट्टा रद्द कर दिया था. सरकार का कहना है कि यह भूमि मूल रूप से एक शोध संस्थान के लिए आवंटित की गयी, लेकिन वहां एक स्कूल चलाया जा रहा था.

क्या है मामला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर तकनीकी एवं शोध संस्थान को आवंटित जमीन ट्रस्ट को पट्टे पर दी गई थी और उस भूमि पर सीबीएसई स्कूल (CBSE School) चलाया जा रहा था, जबकि यह जमीन उच्च शिक्षा के लिए आवंटित की जानी थी. ये विवाद तब शुरू हुआ जब यूपी सरकार ने जौहर यूनिवर्सिटी को आवंटित 400 एकड़ की जमीन को पुन: कब्जे में ले लिया था.