सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए Menstrual pain leave की मांग वाली याचिका पर विचार से किया इंकार
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को Menstrual pain leave (मासिक धर्म दर्द अवकाश) की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह मुद्दा सरकार के नीतिगत दायरे में आता है. याचिका में सभी राज्यों को अपने संबंधित कार्यस्थलों पर छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए Menstrual pain leave के लिए नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला भी शामिल थे, ने याचिका का निस्तारण किया और PIL याचिकाकर्ता को इस मुद्दे पर नीतिगत निर्णय लेने के लिए एक प्रतिनिधित्व के साथ केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी.
इससे पहले 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई थी. संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, पीठ ने जनहित याचिका का विरोध जताते हुए एक कानून की छात्रा की दलीलों पर ध्यान दिया कि अगर नियोक्ताओं को हर महीने महिला कर्मचारियों को Menstrual pain leave देने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह उन्हें काम पर रखने से हतोत्साहित कर सकता है.
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हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिका में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को उठाया गया था, लेकिन मुद्दा नीति से संबंधित होने के कारण वह इस पर विचार नहीं कर सकते.
याचिका के कुछ अहम बिंदु
दिल्ली निवासी शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा वकील विशाल तिवारी के माध्यम से दायर याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act), 1961 की धारा 14 के अनुपालन के लिए केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने की मांग की गई थी. आपको बता दें कि अधिनियम की धारा 14 निरीक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है और इसमें कहा गया है कि उपयुक्त सरकारें ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती हैं और क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकते हैं जिसके भीतर वे इस अधिनियम के तहत कार्य कर सकते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया था कि यूनाइटेड किंगडम, चीन, वेल्स, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया जैसे देश पहले से ही किसी न किसी रूप में मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान कर रहे हैं.
इसमें कहा गया कि केवल महिलाओं को ही सृजन की अपनी विशेष क्षमता के साथ मानव जाति का प्रचार करने का अधिकार है और मातृत्व के विभिन्न चरणों के दौरान, वह कई शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से गुजरती हैं, चाहे वह मासिक धर्म, गर्भावस्था, गर्भपात या कोई अन्य संबंधित चिकित्सीय जटिलताएं हों.
साथ ही याचिका में कहा गया था कि मातृत्व लाभ अधिनियम महिलाओं के सामने आने वाली लगभग सभी समस्याओं के लिए प्रावधान करता है, जिसे इसके कई प्रावधानों से समझा जा सकता है. इस अधिनियम ने नियोक्ताओं के लिए गर्भावस्था के दौरान,गर्भपात, ट्यूबेक्टॉमी ऑपरेशन के लिए और प्रसूति के इन चरणों से उत्पन्न होने वाली चिकित्सा जटिलताओं के मामलों में भी कुछ दिनों के लिए महिला कर्मचारियों को सवैतनिक (Paid) अवकाश देना अनिवार्य कर दिया है.
इसमें यह भी कहा गया है कि केंद्रीय सिविल सेवा (CCS) अवकाश नियमों में महिलाओं के लिए उनकी पूरी सेवा अवधि के दौरान 730 दिनों की अवधि के लिए बाल देखभाल अवकाश (Child Care Leave) जैसे प्रावधान किए गए हैं, ताकि उनके पहले दो बच्चों की देखभाल 18 वर्ष की आयु तक की जा सके.
याचिका में पितृत्व अवकाश को भी चिह्नित कर कहा गया कि इस नियम में पुरुष कर्मचारियों को एक बच्चे की देखभाल के लिए 15 दिनों का पितृत्व अवकाश भी दिया गया है जो कामकाजी महिलाओं के अधिकारों और समस्याओं को पहचानने में एक कल्याणकारी राज्य का एक और बड़ा कदम साबित हुआ है.
याचिका में कहा गया कि बिहार एकमात्र राज्य है जो 1992 से महिलाओं को दो दिन का विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान कर रहा है. इसमें कहा गया है कि कुछ भारतीय कंपनियां हैं जो Paid Period Leave देती हैं जिनमें Zomato, Byju's और Swiggy शामिल हैं.