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Chargesheet लिखने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस विभाग को दिया आदेश, कहा- CrPC में दिए निर्देशों के अनुसार दें जानकारी

मंगलवार (12 मार्च, 2024) के दिन सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के पुलिस को हिदायत दी है. पुलिस विभाग को चार्जशीट बनाते समय सीआरपीसी 173(2) के अनुसार बनाने के आदेश दिए है.

Written By My Lord Team | Updated : March 13, 2024 4:29 PM IST

Police Report: सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को चार्जशीट बनाने से जुड़े मामले पर अहम निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को जांच रिपोर्ट, सीआरपीसी की धारा 173(2) के अनुसार बनाने के आदेश दिए हैं. साथ ही इस आदेश का पालन सख्ती से करने की हिदायत दी. बता दें कि पुलिस द्वारा दी गई जांच रिपोर्ट मामले में अदालत की कार्यवाही को आगे बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण होता है. 

क्या होती है चार्जशीट/पुलिस रिपोर्ट?

हर मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल करती है. सभी राज्यों की पुलिस से जुड़े नियमों में अंतर है.राज्यों के पुलिस मैनुअल अलग है. अब तक पुलिस विभाग चार्जशीट को राज्य में बने नियमों के अनुसार कोर्ट में दाखिल कर रही थी, अब सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोप पत्र को सीआरपीसी की धारा 173(2) के अनुसार लिखने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को सख्ती से पालन करने के आदेश दिए हैं. 

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पुलिस रिपोर्ट बनाने में जांच अधिकारी ध्यान दें

यह आदेश जस्टिस पंकज मित्तल और बेला एम. त्रिवेदी की डिवीजन बेंच ने जारी की है. 

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बेंच ने कहा, 

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“हम धारा 173(2) को लेकर अधिक चिंतित हैं. हमने पाया है कि जांच अधिकारी आरोपपत्र/पुलिस रिपोर्ट जमा करते समय धारा में दिए गए प्रावधानों का पालन नहीं करते हैं.” 

हर घटना की जांच के लिए पुलिस मामले में एक जांच अधिकारी नियुक्त करता है. सामान्यत: लोग इन्हें इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर (I.O) कहते हैं. ये जांच अधिकारी ही कोर्ट में चार्जशीट फाइल करते हैं. 

बेंच ने आगे कहा, 

पुलिस रिपोर्ट/चार्जशीट में ऐसे अधिकारियों द्वारा अनुपालन की जाने वाली अनिवार्य आवश्यकताएं धारा 173, विशेष रूप से उसकी उप-धारा (2) में निर्धारित की गई हैं.''

CrPC की धारा 173(2) में क्या है?

पीठ ने CrPC की धारा 173(2) का पालन करने का आदेश दिया है. 173(2) के अनुसार, जांच अधिकारी को पुलिस रिपोर्ट में पार्टियों का नाम, सूचना की प्रकृति, घटना से परिचित व्यक्तियों के नाम, अपराध किया गया है या नहीं, अगर हां, तो कैसे. साथ ही सेक्शन 173(2) जांच रिपोर्ट में पुलिस को आरोपी  की गिरफ्तारी के बारे में बताना होगा,आरोपित जेल में बंद है या मुचलके पर बाहर है? आदि का विवरण देने का निर्देश देती हैं. 

सीआरपीसी की धारा 173(2) के अनुसार,पुलिस अधिकारी को इन बातों की जानकारी जांच रिपोर्ट में शामिल करनी होगी:

  • पार्टियों के नाम;
  • सूचना की प्रकृति;
  • क्या ऐसा संदेह है कि कोई अपराध किया गया है और यदि हां, तो किसके द्वारा किया गया है;
  • उन व्यक्तियों के नाम, जो मामले के घटनाक्रम को जानते हों,
  • क्या आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है;
  • क्या उसे उसके बांड पर रिहा किया गया है और यदि हां, तो क्या जमानत के साथ या उसके बिना;
  • क्या उसे धारा 170 के तहत हिरासत में भेजा गया है?
  • क्या महिला की चिकित्सीय जांच की रिपोर्ट संलग्न की गई है जहां जांच भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (रेप के लिए सजा का प्रावधान) के तहत अपराध से संबंधित है. 
  • यदि जांच पूरी होने पर, आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजने के लिए पर्याप्त सबूत या संदेह का उचित आधार नहीं है, तो प्रभारी पुलिस अधिकारी को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताना होगा

क्या है मामला? 

सुप्रीम कोर्ट में बेल की मांग को लेकर याचिका दायर की गई. बेल के लिए झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती मिली है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी होने की स्थिति को देखते हुए जमानत से इंकार कर दिया.  इस दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट फाइल करने की प्रक्रिया पर गौर करते हुए पाया कि यह आरोपी द्वारा किए कृत्यों को स्पष्ट नहीं कर रहा है.