याचिकाकर्ता द्वारा केस की सुनवाई के लिए Caste Neutral Bench की मांग पड़ी महंगी, SC ने लगाया 50,000 रुपये का जुर्माना
नई दिल्ली: देश के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) में एक याचिका दायर की गई जिसमें याचिकाकर्ता का यह कहना था कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के लिए खास पीठ गठित की जानी चाहिए जो एक 'जाति तटस्थ पीठ' (Caste Neutral Bench) हो।
याचिकाकर्ता का यह कहना था कि पीठ ऐसी होनी चाहिए जिसमें न उच्च जाति और न ही ओबीसी (OBC) श्रेणी के न्यायाधीश हों। ऐसी पीठ पीठ गठित करने से सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इनकार किया बल्कि याचिका को खारिज किया और याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
SC ने खारिज की यह याचिका
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ऋषिकेश रॉय (Justice Hrishikesh Roy) और न्यायाधीश पंकज मित्तल (Justice Pankaj Mithal) की पीठ ने यह याचिका रद्द की जिसमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) के एक मामले में सुनवाई के लिए 'कास्ट नूट्रल बेंच' के गठन की मांग की गई।
Also Read
- जस्टिस की ग्रेच्युटी भुगतान की याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, चीफ ऑडिटर को जारी किया नोटिस
- यूनियन कार्बाइड के 337 टन अपशिष्ट निपटारे का मामला, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई आज
- पति का पत्नी को Job छोड़ने के लिए मजबूर करना, उसे मनमुताबिक रहने को बाध्य करना 'क्रूरता', मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने Divorce को दी मंजूरी
बता दें कि ये याचिका पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में रद्द की जा चुकी है और मामला मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) की मात्रा से जुड़ा है।
50,000 रुपये का जुर्माना
अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के ऑर्डर में सिर्फ एक कमी है और वो है उस याचिकाकर्ता के खिलाफ जुर्माना न लगाना, जिसने इस तरह की जनहित याचिका दायर की है।
इस स्पेशल लीव पिटिशन को रद्द करते हुए उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना एक महीने के अंदर उच्चतम न्यायालय न्यायिक सेवा समिति (Supreme Court Legal Services Committee) में जमा किया जाना है।
HC ने भी खारिज की थी पिटिशन
उच्चतम न्यायालय में आने से पहले याचिकाकर्ता ने इस याचिका को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर किया था। न्यायाधीश शील नागु (Justice Sheel Nagu) और न्यायाधीश विरेंद्र सिंह (Justice Virender Singh) की पीठ ने इस अंतर्वर्ती याचिका (Interlocutory Application) को खारिज कर दिया था।
अदालत ने अपने ऑर्डर में कहा था कि यह अंतर्वर्ती याचिका सिर्फ इस पीठ के सदस्यों को डराने-धमकाने, कार्यवाही में देरी करने, न्याय की महिमा को कमजोर करने और न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का एक प्रयास है। उन्होंने यह भी कहा कि वो अपनी शपथ से बंधे हैं और वो बिना किसी डर या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के मामले पर निर्णय देंगे। ऐसे में इस तरह की पीठ के गठन की कोई आवश्यकता नहीं है।