सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम नामांकन शुल्क के खिलाफ याचिका पर केंद्र और BCI को जारी की नोटिस
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को राज्य बार काउंसिलों द्वारा अलग-अलग नामांकन शुल्क के कारण दायर याचिका पर नोटिस जारी की.
कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद आपको राज्य बार काउंसिल में पंजीकृत कराने की आवश्यकता होती है, जो उन्हें उस हाई कोर्ट में अभ्यास करने की अनुमति देता है, और उस पंजीकरण के लिए वकीलों को एक निश्चित शुल्क देना पड़ता है, जो भारत के हर राज्य में अलग-अलग होता है. हालांकि एक वकील किसी भी राज्य बार काउंसिल में पंजीकृत हो सकता है, जहा वह चाहता है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने केंद्र सरकार, बार काउंसिल और सभी राज्य बार काउंसिल को नोटिस जारी करने से पहले इस याचिका को "महत्वपूर्ण" करार दिया.
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नामांकन के लिए शुल्क वसूलना अधिवक्ता अधिनियम का उल्लंघन है
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि वकील के नामांकन के लिए शुल्क वसूलना अधिवक्ता अधिनियम और 1961 की धारा 24 (1) का एक सरल उल्लंघन है, साथ ही में याचिका में यह भी मांग की गई है कि राज्य बार काउंसिल को नामांकन के लिए ज़्यादा शुल्क नहीं लेना चाहिए.
अपने दावों को साबित करने के लिए उन्होंने दिखाया कि ओडिशा में यह 42,100 रुपये है, गुजरात में यह 25,000 रुपये है, उत्तराखंड में यह 23,650 रुपये है, झारखंड में यह 21,460 रुपये है और केरल में यह 20,000 रुपये है, जो एक वकील राज्य बार कौंसिल को नामांकन शुल्क के तहत देता है, जिससे यह साफ़ है की हर राज्यों के शुल्कों में बहुत अंतर है.
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि इससे युवा इच्छुक वकीलों बहुत प्रभावित हो रहे है ख़ास तौर पर वह जिनके पास संसाधन नहीं हैं.
हाल ही में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने पंजाब और हरयाणा हाई कोर्ट को इसकी जानकारी दी थी की वह अधिकतम नामांकन शुल्क की समस्या के निदान से सम्ब्नधित ज़रूरी कदम उठाएंगे.