SC नें एक ही FIR के आरोपियों के आवेदनों की Odisha HC के अलग-अलग पीठों द्वारा सुनवाई पर दिया निर्देश
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में ओडिशा उच्च न्यायालय के उस चलन पर गौर किया जहां एक ही प्राथमिकी के विभिन्न आरोपियों की ओर से दाखिल आवेदनों की सुनवाई अलग-अलग पीठों द्वारा की जाती है, और कहा कि यह विषम स्थितियां’’ पैदा करेगा.
न्यूज़ एजेंसी भाषा के अनुसार, न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें ओडिशा उच्च न्यायालय के जनवरी माह के आदेश को चुनौती दी गई थी. पीठ उपर्युक्त टिप्पणी की कि बहुत से उच्च न्यायालयों में चलन है कि एक ही प्राथमिकी से जुड़े आवेदनों को एक ही न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए.
गौरतलब है की ओडिशा उच्च न्यायालय ने स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में जमानत का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी यह कहते हुए कि उसने इस मामले में एक ही प्राथमिकी के विभिन्न आरोपियों की अर्जियों पर न्यायालय के कम से कम तीन भिन्न न्यायाधीशों की ओर से पारित आदेशों को देखा है.
Also Read
- बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन करने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट; RJD, TMC सहित इन लोगों ने दायर की याचिका, अगली सुनवाई 10 जुलाई को
- BCCI को नहीं, ललित मोदी को ही भरना पड़ेगा 10.65 करोड़ का जुर्माना, सुप्रीम कोर्ट ने HC के फैसले में दखल देने से किया इंकार
- अरूणाचल प्रदेश की ओर से भारत-चीन सीमा पर भूमि अधिग्रहण का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर देने के फैसले पर लगाई रोक, केन्द्र की याचिका पर जारी किया नोटिस
15 मई के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस प्रकार का चलन विषम स्थितियां पैदा करेगा. कुछ आरोपियों को जमानत दे दी गई जबकि उसी अपराध में समान भूमिका वाले कुछ आरोपियों को जमानत नहीं दी गई.’’
शीर्ष न्यायालय ने 31 जनवरी 2023 के आदेश को खारिज कर दिया और मामले को वापस उच्च न्यायालय को भेज दिया, और कहा कि, उच्च न्यायालय से अनुरोध किया जाता है कि वह अन्य समन्वित पीठों के आदेशों के प्रभाव पर गौर करें और नए सिरे से आदेश पारित करें। यह आज से एक माह के भीतर किया जाना चाहिए.’’
शीर्ष न्यायालय की पीठ ने निर्देश दिया की, इस अदालत की रजिस्ट्री के रजिस्ट्रार को इस आदेश की प्रति ओडिशा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को भेजने के निर्देश दिए जाते हैं. उससे (उच्च न्यायालय से) इस पर गौर करने तथा उपयुक्त आदेश पारित करने पर विचार का अनुरोध किया जाता है ताकि एक ही अपराध पर विरोधाभासी आदेशों से बचा जा सके.’’