देश के कई राज्यों में नहीं बने ग्राम न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को जारी किए नोटिस
नई दिल्ली, देश की आम जनता को घरGram Nyayalay तक न्याय की पहुंच बनाने के लिए वर्ष 2008 में संसद ने ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 पारित किया था. 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में कई राज्यों ने इन ग्राम न्यायालयों की स्थापना करना तक उचित नहीं समझा हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गंभीर रुख अपनाते हुए देश के सभी हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरलों को नोटिस करते हुए जवाब तलब किया हैं.
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अधिनियम के अनुसार देशभर में ग्राम न्यायालयों की स्थापना की मांग करते हुए नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस ने वर्ष 2019 में याचिका दायर की थी. याचिका में सभी राज्यों को "ग्राम न्यायालय" स्थापित करने निर्देश देने की मांग की गई थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को चार सप्ताह के भीतर ग्राम न्यायालय’ स्थापित करने के लिए अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया था और सभी हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर राज्य सरकारों के साथ परामर्श की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कहा था.
11 राज्यों में बना कानून
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद देश में अब तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल सहित केवल 11 राज्यों में ग्राम न्यायालय का कानून लागू किया जा चुका है. हिमाचल प्रदेश,बिहार और झारखंड जैसे कई राज्य राज्य इसका लगातार विरोध करते रहे हैं. तमिलनाडु ने अब तक राज्य में एक भी ग्राम न्यायालय स्थापित नहीं किया है.जबकि संसद द्वारा इस अधिनियम 2008 में पारित किया गया था और 2 अक्टूबर 2009 से इस कानून की शुरुआत की गई थी.
मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता संस्था की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इन बिंदुओं को सामने लाते हुए कहा कि अधिनियम लगभग 14 साल पहले पारित किया गया था, कई राज्यों ने एक भी ग्राम न्यायालय की स्थापना नहीं की है.
शब्द को लेकर हुई गफलत
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत से कहा कि ग्राम न्यायालयों को लेकर केंद्र सरकार ने यह स्टैंड लिया है कि राज्यों द्वारा ग्राम न्यायालयों की स्थापना अनिवार्य नहीं है क्योंकि अधिनियम में "करेगा" की बजाय "हो सकता है" शब्द का प्रयोग किया है. अधिवक्ता ने अदालत से कहा कि न्याय तक आम लोगों की पहुंच एक मौलिक अधिकार हैं इसलिए अधिनियम में अंग्रेजी के मे शब्द के प्रयोग की व्याख्या होगा के रूप में की जानी चाहिए.
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देश में न्याय की पहुँच को आसान से कहा कि देश की 50% से अधिक आबादी वकीलों का खर्च वहन नहीं कर सकती और नियमित अदालतों से संपर्क नहीं कर सकती है. यहीं कारण है कि छोटे मामलों के तेजी से फैसले के लिए ग्रामीण स्तर पर अदालतों के लिए यह अधिनियम बनाया गया.
राज्य कर रहे विरोध
सुनवाई के दौरान झारखंड राज्य की ओर से अधिनियम को अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित कानूनों के साथ संघर्ष पैदा करने वाला बताया. अतिरिक्त महाधिवक्ता तपेश कुमार सिंह ने कहा कि सरकार इसे लागू नहीं कर रही हैं क्योंकि अधिनियम ने अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में उत्तर पूर्वी राज्यों को छूट दी है. इस मामले में हाईकोर्ट भी एक पक्षकार हैं
सभी पक्षों की सुनवाई के बाद जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने इस मामले में हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण भागीदारी को देखते हुए सभी हाईकोर्ट को पक्षकार बनाते हुए उनके रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में ग्राम अदालतों की स्थापना करने वाले उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों को अपने अनुभव साझा करने के निर्देश दिए है.