SC ने किया नई Constitution bench का गठन, राजस्थान और मध्यस्था से जुड़े दो मामलो पर करेगी सुनवाई
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दो अलग अलग मामलों में संवैधानिक बिंंदूओ पर निर्णय के लिए नई Constitution bench का गठन किया है. सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ के निर्देश पर गठित ये संविधान पीठ कॉक्स एंड किंग्स बनाम एसएपी प्राइवेट लिमिटेड और तेज प्रकाश पाठक बनाम राजस्थान हाईकोर्ट मामलों पर सुनवाई करेगी.
सीजेआई द्वारा गठित इस संविधान पीठ में सीजेआई CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल है. यह पीठ 21 मार्च से मामलों पर सुनवई शुरू करेगी.
तेज प्रकाश पाठक बनाम राजस्थान हाईकोर्ट
संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध पहला मामला तेज प्रकाश पाठक बनाम राजस्थान हाईकोर्ट का है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगी कि क्या एक बार किसी भी भर्ती के लिए चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद राज्य सरकार पात्रता नियमों में बदलाव कर सकती है या नहीं.
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इस याचिका में सवाल किया गया था कि क्या एक बार विज्ञापित हुए निर्धारित मानदंड के आधार पर की जा रही भर्ती में चयन की प्रक्रिया शुरू होने के क्या संबंधित विभाग संबंधित अधिकारियों द्वारा पात्रता या मानदंडो को बदला जा सकता है?
यह मामला पूर्व में जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध था, लेकिन 23 सितंबर 2022 को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद यह पीठ भंग कर दी गई थी, जिसके बाद अब नए सिरे से पीठ का गठन किया गया है.
मध्यस्थता अधिनियम की धारा 8
संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध दूसरा मामला मध्यस्थता की कार्यवाही से जुड़ा हुआ है.
कॉक्स एंड किंग्स बनाम एसएपी प्राइवेट लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट की यह संविधान पीठ कई बिंदूओ पर विचार करेगी. जिसमें मुख्य रूप से कंपनियों के समूह के सिद्धांत को मध्यस्थता अधिनियम की धारा 8 में पढ़े जाने को लेकर है.
पीठ को यह तय करना है कि क्या कंपनियों के समूह के सिद्धांत को अधिनियम की धारा 8 में पढ़ा जाना चाहिए या क्या यह किसी वैधानिक प्रावधान से स्वतंत्र भारतीय न्यायशास्त्र में मौजूद हो सकता है?
Single economic reality’
इसके साथ ही पीठ को यह भी तय करना है कि क्या कंपनियों के समूह के सिद्धांत को single economic reality’ के सिद्धांत के आधार पर जारी रखा जाना चाहिए?
इसके अलावा संविधान पीठ को पनियों के समूह सिद्धांत की निहित सहमति या पक्षों के बीच मध्यस्थता करने के इरादे की व्याख्या के साधन के रूप में माने जाने के बिंदू भी तय करना है.
पीठ इस सवाल पर भी विचार करेगी कि क्या अन्तर्निहित सहमति के अभाव में भी अहंकार को बदलने और/या कॉर्पोरेट घूंघट को भेदने के सिद्धांत अकेले कंपनियों के समूह के सिद्धांत को संचालन में धकेलने को उचित ठहरा सकते हैं?