Supreme Court ने केंद्र, मणिपुर सरकार से महिलाओं के खिलाफ अपराधों का विवरण मांगा
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से निपटने के लिए तौर-तरीके विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया और केंद्र तथा राज्य सरकार से ऐसे सभी मामलों में दर्ज एफआईआर (FIR) का विवरण मांगा।
शीर्ष अदालत ने सोमवार को केंद्र सरकार से मणिपुर को पुनर्वास उद्देश्यों के लिए प्रदान किए गए राहत पैकेज का विवरण भी प्रदान करने को कहा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) की पीठ उन दो आदिवासी महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्हें मणिपुर में निर्वस्त्र घुमाया गया था और उनका यौन उत्पीड़न किया गया था। साथ ही पूर्वोत्तर राज्य में अंतर-जातीय झड़पों से संबंधित याचिकाएं भी शामिल थीं।
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सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, पीठ ने कहा, "हम इस बात से निपटेंगे कि इन महिलाओं (जिन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया है) को न्याय मिले, लेकिन हमें मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को भी देखना होगा।" अदालत ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करेगी कि जहां शिकायतें दर्ज की गई हैं, उन सभी मामलों में कार्रवाई की जाए।
उसने केंद्र और राज्य सरकार से महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जुड़े मामलों में दर्ज एफआईआर की संख्या के बारे में जानकारी देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे दर्ज की गई लगभग 6000 एफआईआर को विभाजित करने की आवश्यकता होगी।
इसमें केंद्र और राज्य से शून्य एफआईआर, की गई कार्रवाई, कानूनी सहायता की स्थिति, पीड़ितों और गवाहों के बयान दर्ज करने की स्थिति आदि जैसे विवरण मांगे गए।
अदालत में हुई कार्यवाही
अपराध से जीवित बचे लोगों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने आरोप लगाया कि मणिपुर पुलिस ने उन पर यौन हिंसा की अनुमति देने के लिए भीड़ के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने कहा, "पुलिस ने दोनों महिलाओं को भीड़ के पास ले जाकर छोड़ दिया और फिर जो हुआ वह सबके सामने है।"
सिब्बल ने जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने का विरोध किया और लैंगिक हिंसा मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की मांग की।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर जांच की निगरानी शीर्ष अदालत द्वारा की जाती है तो केंद्र सरकार को कोई आपत्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा, "महामहिम को जांच की निगरानी करने दीजिए।"
हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत से यौन हिंसा के मामलों के संबंध में जमीनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन का अनुरोध किया।
उन्होंने कहा, “महिलाओं को अपनी आपबीती सुनाने के लिए एक माहौल की ज़रूरत है। रिपोर्ट को (अदालत में) वापस आने दीजिए।''
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने राहत शिविरों के संबंध में प्रभावी कदम उठाने के लिए अदालत द्वारा स्थानीय आयुक्तों की नियुक्ति का सुझाव दिया।
जवाब में, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने घटनाओं की श्रृंखला को और अधिक ठोस तरीके से प्रस्तुत करने के लिए अदालत से कल सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। उन्होंने एसआईटी के गठन का विरोध करते हुए कहा कि जांच में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होना एक 'अतिवादी दृष्टिकोण' होगा।
अदालत ने स्पष्ट किया, “हमारे हस्तक्षेप की सीमा इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है। अगर सरकार ने जो किया है उससे हम संतुष्ट हैं, तो हम हस्तक्षेप भी नहीं कर सकते।''
वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने एक सेवानिवृत्त अधिकारी की अध्यक्षता में एक एसआईटी के गठन का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मणिपुर के लोग केंद्र और राज्य के बीच अंतर नहीं करते।
अदालत ने संकेत दिया कि वह हिंसा प्रभावित राज्य में पीड़ितों के बयान दर्ज करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और विषय विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर सकती है।
अदालत ने बंगाल में हुई ऐसी ही घटना पर कार्रवाई की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई टाल दी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हम आपको बाद में सुनेंगे, पहले मणिपुर को सुनें। मणिपुर के लिए आपके पास क्या सुझाव हैं? मणिपुर में जो हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि यह कहीं दूसरी जगह भी हुआ है।''
पीठ ने एफआईआर दर्ज करने में 18 दिन से ज्यादा की देरी पर हैरानी जताई। उसने पूछा, “पुलिस को 4 मई को तुरंत एफआईआर दर्ज करने में क्या बाधा थी?” पीठ ने कहा कि उसका इरादा संवैधानिक प्रक्रिया में समुदाय का "विश्वास बहाल करना" है।
सुप्रीम कोर्ट परेशान करने वाली घटना के संबंध में की गई कार्रवाइयों का विवरण देने वाले केंद्र सरकार के जवाब का कल भी अध्ययन करेगा। केंद्र सरकार ने पहले शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि घटना की जांच सीबीआई को स्थानांतरित कर दी गई है और उसने मुकदमे सहित पूरे मामले को मणिपुर राज्य के बाहर किसी भी राज्य में स्थानांतरित करने का आदेश देने का अनुरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने वायरल वीडियो पर 20 जुलाई को स्वत: संज्ञान लिया और केंद्र और राज्य सरकार से 28 जुलाई तक उठाए गए कदमों के बारे में उसे अवगत कराने को कहा। केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला द्वारा अदालत में दायर हलफनामे में बताया गया, "केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की सहमति से जांच एक स्वतंत्र एजेंसी यानी सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया है।"
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो सामने आने के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था, ''हिंसा को अंजाम देने के लिए महिलाओं को साधन के रूप में इस्तेमाल करना संवैधानिक लोकतंत्र में बिल्कुल अस्वीकार्य है।''
पीड़िताओं ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
मणिपुर में भीड़ द्वारा नग्न परेड और यौन उत्पीड़न की शिकार हुईं दो आदिवासी महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सोमवार को उनकी याचिका पर सुनवाई की, साथ ही, मणिपुर में अंतर-जातीय झड़पों से संबंधित याचिकाओं पर भी सुनवाई हुई।
इसमें स्वत: संज्ञान मामला भी शामिल है, जहां दो युवतियों को नग्न घुमाने का वीडियो वायरल होने पर केंद्र और मणिपुर सरकारों को तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया गया था।
दायर अपने जवाब में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है और शीर्ष अदालत से अनुरोध किया गया कि मुकदमे सहित पूरे मामले को मणिपुर के बाहर किसी अन्य राज्य में स्थानांतरित करने का आदेश दिया जाए।