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बिलकिस बानो की रिव्यू पीटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

बिलकिस बानो ने मई में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजरात सरकार को 1992 के जेल नियमों के तहत 11 दोषियों की रिहाई के लिए अनुमति दी थी.

Written By nizamuddin kantaliya | Published : December 17, 2022 6:45 AM IST

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात गैंगरेप पीड़िता बिलकिस बानो द्वारा दोषियों की रिहाई के मामले में दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है. जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने 13 दिसंबर को इस रिव्यू याचिका को खारिज किया, जिसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार द्वारा बिलकिस बानों की अधिवक्ता को दी गई.

13 मई का फैसला

बिलकिस बानों ने दुष्कर्म करने वाले दोषियों की छूट के लिए गुजरात सरकार की 1992 की नीति के आवेदन की अनुमति देने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार दायर कि थी. सुप्रीम कोर्ट ने विगत 13 मई के एक फैसले में कहा था कि दोषियों की छूट उस राज्य में सजा के समय मौजूद नीति के अनुसार मानी जानी चाहिए जहां वास्तव में अपराध किया गया था.

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समय पूर्व रिहाई के लिए दोषी राधेश्याम भगवानदास शाह उर्फ लाला वकिल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कि गयी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि गुजरात राज्य को 9 जुलाई, 1992 की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए उनके आवेदन पर विचार करना चाहिए.

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फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मामले में दोषियों की छूट उस राज्य में सजा के समय मौजूद नीति के अनुसार मानी जानी चाहिए जहां वास्तव में अपराध किया गया था. चुकि इस मामले में केस की सुनवाई और ट्रायल कोर्ट का फैसला महाराष्ट की अदालत ने दिया था, इसलिए इस मामले में रिहा करने के लिए महाराष्ट्र की वर्तमान नीति को अपनाने की मांग कि गयी.

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गैंगरेप और हत्या के दोषी

गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में भीड़ द्वारा 2002 के दंगों के बाद बानो के साथ गैंगरेप किया गया था और उनकी तीन साल की बेटी सहित बारह लोगों की हत्या कर दी गई थी.

गौरतलब है कि इस मामले की ट्रायल महाराष्ट्र में हुई थी जिसके बाद मुंबई की एक अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया था. अदालत ने इन सभी आरोपियो को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

गुजरात सरकार ने 10 अगस्त 2022 को दोषियों को रिहा करने के आदेश जारी किए थे जिसके बाद उन्हे 15 अगस्त पर रिहा कर दिया गया. कैदियों की रिहाई पर गुजरात सरकार ने कहा था कि सरकार ने सभी 11 कैदियों को इस आधार पर रिहा किया, क्योंकि दोषियों ने जेलों में 14 साल और उससे अधिक की सजा पूरी कर ली थी और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था.

फैसले को बनाया आधार

गुजरात सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो का हवाला देते हुए 1992 की गुजरात सरकार की नीति के अनुसार फैसला लेने की बात कही थी.

दोषियों की रिहाई होने पर मामले में पीड़िता बिलकिस बानों ने सुप्रीम कोर्ट के 13 मई के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की. याचिका में कहा गया कि गुजरात की 1992 की छूट नीति के बजाय महाराष्ट्र राज्य की छूट नीति के वर्तमान मामले में लागू होना चाहिए, क्योंकि मामले में सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के परिवार के सदस्यों के साथ गैंगरेप और हत्या करने वाले 11 दोषियों को छूट देते हुए रिहा किया. इन सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.