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एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of Peoples Act, 1951) की धारा 33(7) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी.

Written By My Lord Team | Published : February 2, 2023 1:23 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें एक उम्मीदवार को एक साथ एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने से रोकने की मांग की गई थी.

मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की तीन-सदस्य पीठ ने इस मामले को नीतिगत मामला बताते हुए कहा कि एक उम्मीदवार को एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की अनुमति देने से राजनेता प्रेरित होंगे की वे अखिल भारतीय नेता बने.

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याचिका में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1951 के अधिनियम की धारा 33(7) में स्पष्ट मनमानी (Manifest Arbitrariness) के अभाव में, उसके लिए इस प्रावधान को रद्द करना संभव नहीं है. इसी के साथ उन्होंने इस याचिका को खारिज कर दिया.

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गौरतलब है कि भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of Peoples Act, 1951) की धारा 33(7) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी.

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यह धारा एक उम्मीदवार को एक ही चुनाव (संसदीय, राज्य विधानसभा, द्विवार्षिक परिषद, या उप-चुनाव) में अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों (Constituencies) से कोई भी चुनाव  लड़ने की अनुमति देती है. इस प्रावधान को 1996 में लागू किया गया था, इससे पहले निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या पर कोई रोक नहीं थी, यानि एक उम्मीदवार कितने भी निर्वाचन क्षेत्रों (Constituencies) से चुनाव लड़ सकता था.

खजाने पर दबाव

याचिका में तर्क दिया गया था कि इसके द्वारा सरकारी ख़ज़ाने (Public Exchequer) पर बहुत दबाव पड़ता है क्योंकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 70 के तहत यदि कोई उम्मीदवार 2 सीटों से चुनाव लड़ने के बाद, दोनों ही सीटों पर विजयी रहता है तो उसे 1 सीट से इस्तीफा देना होगा क्योंकि वो 1 सीट ही अपने पास रख सकता है, जिसके कारण उस सीट के लिए दोबारा से चुनाव कराने पड़ते हैं.

लेकिन इसका जवाब देते हुए पीठ ने कहा कि इस मामले कार्रवाई करना संसद का विशेषाधिकार है और इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है.