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पेशेवर कार्य करने से वकीलों का आवास 'व्यावसायिक भवन' नहीं होगा, Supreme Court ने दिल्ली नगर निगम की याचिका खारिज करते हुए कहा

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिण दिल्ली नगर निगम द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी जिसमें कहा गया था वकीलों के घर से होनेवाली पेशेवर गतिविधि के कारण उनके घर को व्यावसायिक भवन के तहत टैक्स लगाने की मांग थी. मामले में पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने एकल न्यायधीश के इस फैसले को बरकरार रखा था.

Written By My Lord Team | Published : January 26, 2024 8:28 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि वकीलों के घर पर होनेवाली वकालत से जुड़ी गतिविधियों को वाणिज्यिक (Commercial) तौर पर नहीं देखा जाए. इसलिए उनके आवासीय भवन दिल्ली नगर निगम अधिनियम के अनुसार "व्यावसायिक भवन" के रूप में प्रॉपर्टी टैक्स से मुक्त है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि वकीलों की व्यावसायिक गतिविधियां वाणिज्यिक गतिविधि के तौर पर नहीं आती है. अत: वकीलों का फर्म व्यावसायिक प्रतिष्ठान (Business establishment) या व्यावसायिक गतिविधि (Business activity) नहीं है. इस टिप्पणी के साथ बेंच ने दिल्ली नगर निगम द्वारा दायर एसएलपी (SLP) को खारिज कर दिया.

क्या है मामला?

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दिल्ली हाईकोर्ट में दक्षिण दिल्ली नगर निगम द्वारा एकल न्यायधीश के फैसले के खिलाफ अपील दायर की. एकल न्यायाधीश की बेंच ने फैसला दिया कि वकीलों द्वारा दी जा रही सेवाएं पेशेवर है. इसलिए उनके आवास को व्यावसायिक प्रतिष्ठान के अंतर्गत टैक्स लगाने के लिए श्रेणीबद्ध नही किया जा सकता है. यह मुद्दा 2013 में उठा,  जब एसडीएमसी (SDMC) ने एक व्यक्ति (पेशे से वकील) को आवासीय परिसर में अपना कार्यालय चलाने के चलते प्रॉपर्टी टैक्स की मांग करते हुए नोटिस जारी किया. एकल न्यायाधीश की बेंच ने कहा, इस कोर्ट के विचार से कोई परिसर सिर्फ इसलिए व्यवसायिक नहीं बन जाता क्योंकि वहां वकील ने अपने केस से संबंधित फाइल पढ़ी या अपने कार्य से संबंधित कोई कार्य किया. एसडीएमसी ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.

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घर में पेशेवर गतिविधि पर टैक्स नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस नजमी वजीरी और जस्टिस सुधीर कुमार जैन की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की. कोर्ट में एमसीडी (MCD) ने मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वकीलों की गतिविधि व्यावसायिक है. इसलिए इस कार्य के लिए इस्तेमाल हुए इमारत 'व्यावसायिक भवन' की श्रेणी में आएगा. जबाव में प्रतिवादी (वकील) ने कहा कि टैक्स लगाने की शक्ति तय की जानी चाहिए क्योंकि दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (Delhi Municipal Corporation Act, 1957) के अनुसार आवासीय भवनों में की जानेवाली 'व्यावसायिक गतिविधियों' पर टैक्स लगाने की कोई शक्ति नहीं है. वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी एकल न्यायाधीश के फैसले के साथ सहमति दिखाते कहा कि प्रसांगिक कानून में वकीलों की व्यावसायिक गतिविधियों को कर युक्त व्यावसायिक गतिविधि के तौर पर शामिल नहीं किया गया है. एसडीएमसी ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.

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