सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा PMLA के प्रावधानों को नजरंदाज कर चुनौती देने की प्रवृत्ति की आलोचना की
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ शराब घोटाले (Chhattisgarh Liquor Scam) से जुड़ी धन शोधन (Money Laundering) की याचिकाओं को सुनते समय सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने यह टिप्पणी की है कि कई याचिकाकर्ता 'धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002' (Prevention of Money Laundering Act, 2002) के प्रावधानों को नजरंदाज कर उन्हें चुनौती दे रहे हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की न्यायधीश बेला एम त्रिवेदी (Justice Bela M Trivedi) और न्यायधीश प्रशांत कुमार मिश्रा (Justice Prashant Kumar Mishra) की अवकाशकालीन पीठ ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़ी कुछ धन शोधन की याचिकाओं को सुनते समय कहा कि हाल ही में एक 'ट्रेंड' देखा गया है जिसमें याचिकाकर्ता सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका फाइल कर रहे हैं जिससे 'धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चैलेंज किया जा रहा है और उन फोरम्स को नजरअंदाज किया जा रहा है जो याचिकाकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने किया विजय मदनलाल जजमेंट का जिक्र
सुप्रीम कोर्ट का यह कहना है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के विजय मदनलाल जजमेंट (Vijay Madanlal Judgement) को पास करने के बाद भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं फाइल की जा रही हैं।
Also Read
- बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन करने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट; RJD, TMC सहित इन लोगों ने दायर की याचिका, अगली सुनवाई 10 जुलाई को
- BCCI को नहीं, ललित मोदी को ही भरना पड़ेगा 10.65 करोड़ का जुर्माना, सुप्रीम कोर्ट ने HC के फैसले में दखल देने से किया इंकार
- अरूणाचल प्रदेश की ओर से भारत-चीन सीमा पर भूमि अधिग्रहण का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर देने के फैसले पर लगाई रोक, केन्द्र की याचिका पर जारी किया नोटिस
इससे पीएमएलए के प्रावधानों के तहत आने वाले फोरम्स नजरअंदाज हो रहे हैं, जबकि याचिकाकर्ता वहां से भी न्याय पा सकते हैं. अनुच्छेद 32 की वजह से पीएमएलए के तहत आने वाले ये दूसरे फोरम दरकिनार हो रहे हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने कही ये बात
समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने याचिकाओं के सुनवाई योग्य होने को लेकर गंभीर आपत्तियां जताईं। मेहता ने कहा कि कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने और फिर कोई दंडात्मक कार्रवाई न किए जाने का आदेश प्राप्त करने का एक नया चलन है, जो वास्तव में एक अग्रिम जमानत होती है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू (Additional Solicitor General General SV Raju) ने भी मेहता के अभिवेदन का समर्थन किया और कहा कि बार-बार दायर की जाने वाली इस प्रकार की याचिकाओं को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचने के चलन पर रोक लगनी चाहिए।