वकीलों की डिग्री और प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए Supreme Court ने किया कमेटी का गठन
नई दिल्ली: देश की अदालतों में कार्यरत अधिवक्ताओं की कानून की डिग्री और प्रमाण पत्रों के सत्यापन की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक 8 सदस्य वाली कमेटी का गठन किया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी में हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज अरूण टंडन, राजेन्द्र मेनन, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह के साथ ही बीसीआई द्वारा नामित 3 सदस्य शामिल होंगे.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने देश की सभी राज्य बार काउंसिल द्वारा बीसीआई के एक कार्यालय आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिए है.
अधिवक्ता अजय शंकर श्रीवास्तव की ओर से दायर याचिका में बीसीआई के आदेश को चुनौती दी गई थी.
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BCI का सुझाव, अगस्त तक रिपोर्ट
सुनवाई के दौरान बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि राज्य बार काउंसिलों को बीसीआई के कार्यालय आदेश का उद्देश्य सत्यापन प्रक्रिया को रोकना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि सत्यापन केवल अभ्यास के प्रमाण पत्र के आधार पर नहीं है, बल्कि डिग्री प्रमाणपत्रों की वैधता को भी ध्यान में रखा जाना था.
बीसीआई अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा द्वारा मामले में उच्च स्तरीय कमेटी के गठन का सुझाव को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कमेटी का गठन किया है.
पीठ ने गठित कमेटी से इस मामले में कार्यवाही शुरू करते हुए 31 अगस्त 2023 तक अपनी रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए है.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि "सभी विश्वविद्यालय और परीक्षा बोर्ड बिना शुल्क लिए डिग्रियों की सत्यता की पुष्टि करेंगे, और राज्य बार काउंसिल द्वारा मांग पर बिना किसी देरी के कार्रवाई की जाएगी. हम समिति से अनुरोध करते हैं कि पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तारीख और समय में काम शुरू करें और स्थिति रिपोर्ट 31 अगस्त 2023 तक अदालत में पेश करे.
2015 में बीसीआई ने बीसीआई प्रमाणपत्र और अभ्यास का स्थान (सत्यापन) नियम 2015 को अधिसूचित किया था. अधिवक्ताओं के प्रेक्टिस स्थान से सत्यापन की प्रक्रिया एसबीसी और बीसीआई द्वारा की गई थी.
इस मामले में कई हाईकोर्ट में याचिकाए दायर कर बीसीआई के आदेश को चुनौती दी गई थी. जिसके बाद बीसीआई ने सभी याचिकाओं को एक साथ ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाय की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलो को अपने यहां ट्रासफर कर दिया था.
बीसीआई ने बाद में सत्यापन के लिए एक कमेटी का गठन किया, लेकिन विश्वविद्यालयों द्वारा उनके द्वारा जारी किए गए डिग्री प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने के लिए शुल्क की मांग के कारण सत्यापन की प्रक्रिया शुरू नही हो पायी.
बाद में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने विश्वविद्यालयों द्वारा इस तरह के शुल्क लगाने पर रोक लगा दी गई.
25.70 लाख अधिवक्ता
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि प्रासंगिक समय में अधिवक्ताओं की संख्या 16 लाख थी लेकिन वर्तमान में यह 25.70 लाख होने का अनुमान है.
पीठ ने कहा कि बीसीआई को राज्यवार सत्यापन के आकड़े पेश किए जाने थे, लेकिन अब तक केवल 1.99 लाख घोषणाएँ प्राप्त हुई है.
पीठ ने कहा कि यह सामने आया है कि राज्य बार काउंसिलों में नामांकित अधिकांश अधिवक्ताओं ने अभी तक अपना सत्यापन प्रस्तुत नहीं किया है.
बाहर किया जाना जरूरी
पीठ ने इस बात पर सहमति जताई कि बीसीआई को आशंका है कि कई लोग कानून का अभ्यास करने के लिए योग्य नहीं हैं. पीठ ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए और उनको बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए जो बाहरी है.
पीठ ने अपने आदेश में कहा "जिनके पास शैक्षिक योग्यता या क़ानूनी डिग्री प्रमाण पत्र नहीं है, वकील होने का दावा करने वाले ऐसे लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में प्रवेश नहीं दिया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि सभी वास्तविक वकीलों का कर्तव्य है कि वे अपनी डिग्री सत्यापित करने की इस प्रक्रिया में सहयोग करें और जब तक यह अभ्यास समय-समय पर नहीं किया जाता है, तब तक न्याय प्रशासन गंभीर संकट में रहेगा.