पीड़ित प्रतिकर योजना में यौन पीड़िताओं को राज्य दे रहे है 5 की जगह 3 लाख, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
नई दिल्ली: यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िताओं को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने और उन्हे आर्थिक संबल प्रदान करने के लिए प्रारंभ की गई पीड़ित प्रतिकर योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
SOCIAL ACTION FORUM FOR MANAV ADHIKAR संस्था की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और दिल्ली में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के मामले में दिए जा रहा मुआवजा योजना के अनुसार तय मुआवजे से कम दिया जा रहा है.
CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और दिल्ली के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सहित सभी राज्यों को याचिका का जवाब देने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है.
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और बिहार राज्य के विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ ही केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब पेश करने के आदेश दिए है.
पीड़ितों के लिए कार्यरत संस्था
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को बताया कि वह एक गैर लाभकारी संस्था है जो यौन उत्पीड़न सहित अन्य अपराधों से सहित महिलाओं को लेकर कार्य कर रही है. वर्तमान में उनके पास 21 यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं से जुड़े मामले सामने आए है जिन्हें नालसा की ओर से वर्ष 2018 में शुरू की गई योजना के अनुसार मुआवजा नहीं दिया गया है.
संस्था की ओर से अदालत को बताया गया कि नालसा की ओर से यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़ित महिला या उसके पारिवारिक सदस्य के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख का प्रावधान किया गया है लेकिन कई राज्य केवल तीन लाख ही मुआवजे के तौर पर भुगतान कर रहे है.
राज्य दे रहे है अलग अलग मुआवजा
दायर की गई याचिका में SOCIAL ACTION FORUM की ओर से अदालत को बताया गया कि देश में यौन उत्पीड़न के साथ अन्य अपराधों की शिकार महिलाओं और उनके उत्तर बेटियों के लिए NALSA की ओर से वर्ष 2018 में इस योजना की शुरुआत की गई थी.
आईपीसी प्रावधानों तहत यौन अपराधों के उत्तरजीवियों को नालसा की 2018 की मुआवजा योजना के अनुसार मुआवजा प्रदान किया जाना अनिवार्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 के एक फैसले में भी स्पष्ट किया था कि सभी राज्यों को पीड़ितों को मुआवजे के लिए नालसा की पीड़ित प्रतिकर योजना का पालन करना होगा.
याचिका में कहा गया कि नालसा की पीड़ित प्रतिकर योजना के तहत यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं या उनके उत्तरजीवियों को 5 लाख के मुआवजे का प्रावधान किया गया है. लेकिन देश के कई राज्य इस मामले में दिए जाने वाले मुआवजे का भुगतान अलग अलग कर रहे है.
याचिकाकर्ता ने इस मामले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और दिल्ली राज्यों में पीड़ित प्रतिकर योजना के तहत दिए जाने वाले मुआवजे की जानकारी देते हुए अदालत को बताया कि ये राज्य सुप्रीम कोर्ट निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अलग-अलग मुआवजे का भुगतान कर रहे हैं.
बढ़ रहा है महिलाओं के प्रति अपराध
संस्था की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुई अधिवक्ता ज्योतिका कालरा ने अदालत को बताया कि यौन उत्पीड़न से शिकार पीड़ितों के साथ काम करते हुए उन्होने अनुभव किया है कि इन पीड़िताओं को समय पर न्याय, उचित उपचार, समाज में बहाली, मुआवजे और सहायता तक पहुंच नहीं हो पाती है. कई मामलों में पीड़ितों/जीवितों/परिवारों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है.
अधिवक्ता कालरा ने अदालत में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर बताया कि हमारे देश में बलात्कार से संबंधित अपराध दर पिछले दो दशकों में 70.7 प्रतिशत बढ़ी है, जो 2001 में प्रति 100,000 महिलाओं और लड़कियों पर 11.6 से बढ़कर 2018 में 19.8 हो गई.
ऐसी स्थिति में जब महिलाओं के प्रति अपराध में लगातार बढोतरी हो रही है, लेकिन पीड़िताओं को मुख्यधारा में लाने के लिए नालसा की इस योजना के बारे में कोई जागरूकता नहीं है.
देश में योजना को लेकर नहीं जागरूकता
कालरा ने अदालत से कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 25 जुलाई, 2018 के एक आदेश के बावजूद पीड़ित मुआवजा योजना के बारे में देश में जागरूकता की कमी पाई है, इसके साथ देश के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों में मुआवजा प्राप्त करने की अलग अलग प्रक्रिया और मुआवजा पीड़ितों की पीड़ा को बढ़ा रही हैं.
अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि वर्ष 2018 की NALSA योजना और 357A CrPC के बारे में पुलिस की जागरूकता और प्रशिक्षण के अभाव में, पुलिस यौन पीड़ितों को मुआवजे के लिए योग्य बनाने वाली धाराओं को एफआईआर में दर्ज नही जोड़ती है.
याचिका में बिहार और दिल्ली का उदाहरण देते हुए याचिकाकर्ता संस्था ने कहा कि मुआवजे के लिए यहां पर पीड़ितों को एक फॉर्म भरना होता है, जो गरीबों और अशिक्षितों के लिए न्याय पाने में बाधा है, जबकि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में पीड़ित की ओर से एक आवेदन पर्याप्त है.
पीड़ित महिलाओं को मिले तत्काल राहत
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार सहित चार राज्यों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है कि यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों की जांच शीघ्रता से पूर्ण की जानी चाहिए और जांच में 60 दिनों से अधिक समय नहीं लगना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट से भी अनुरोध किया गया कि NALSA के नियम 9 के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकार महिला या उसके उत्तरजीवी को मुआवजा, अन्तरिम वित्तीय सहायता को तत्काल देने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए जाए.
साथ देशभर में पीड़ित प्रतिकर योजना के तहत एक समान मुआवजा देने और योजना का सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा इस योजना का व्यापक प्रचार करने के आदेश देने का भी अनुरोध किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद केंद्र सरकार के साथ चारों राज्यों को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले वे इन 4 राज्यों के मामले की सुनवाई करेगा और जरूरत पड़ने पर पुरे देश के राज्यों के मामलों पर भी सुनवाई करेगा.