कठुआ गैंगरेप मामले में आरोपी शुभम पर चलेगा बालिग के तौर पर मुकदमा
नई दिल्ली, कठुआ गैंगरेप मामले में अब तक नाबालिग होने का दावा करते आ रहे आरोपी शुभम सांगरा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश दिया हैं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने कठुआ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए आदेश दिया कि आरोपी शुभम सांगरा पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाए ना कि नाबालिग के तौर पर.
मेडिकल अनुमान केवल एक राय
पीठ की ओर से बुधवार सुबह न्यायालय समय शुरू होते ही जस्टिस जे बी पारदीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह माना जाता है कि प्रतिवादी आरोपी अपराध के समय किशोर नहीं था और उस पर बालिग के तौर पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए जिस तरह से अन्य सह-आरोपियों पर कानून के अनुसार मुकदमा चलाया गया था. फैसले में पीठ ने कहा हैं कि आरोपी की उम्र के बारे में मेडिकल एक्सपर्ट का अनुमान सबूत का वैधानिक विकल्प नहीं है और यह केवल एक राय है.
गौरतलब है कि इस मामले में 27 मार्च, 2018 को कठुआ की निचली अदालत ने आरोपी शुभम को एक नाबालिग मानते हुए मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी. 11 अक्तूबर 2018 को जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए कठुआ अदालत के फैसले को सही ठहराया था. जम्मू कश्मीर प्रशासन ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी.
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निगम और स्कूल रिकॉर्ड में विरोधाभास
जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से दायर याचिका में हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा गया कि वर्ष 2018 में अपराध के वक्त आरोपी बालिग था और हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश की पुष्टि कर गलती की है. क्योंकि हाईकोर्ट ने यह परीक्षण भी नहीं किया कि आरोपी की जन्मतिथि के बारे में निगम और स्कूल के रिकॉर्ड में विरोधाभास है.
सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें इसको जुवेनाइल बताया गया था. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मेडिकल साक्ष्य पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं, यह साक्ष्य के मूल्य पर निर्भर करता है. ऐसी स्थिती में जब आरोपी को अपराध के समय किशोर नहीं माना जाता है. अभियुक्त की आयु सीमा निर्धारित करने के लिए किसी अन्य निर्णायक सबूत के अभाव में उम्र के संबंध में चिकित्सा राय पर विचार किया जाता है, जो स्पष्ट है.
ये है मामला
पुलिस द्वारा मामले में पेश की गयी 15 पेज की चार्जशीट के अनुसार 10 जनवरी 2018 को अगवा की गयी आठ साल की बच्ची को कठुआ जिले के एक गांव के मंदिर में बंधक बनाकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया. उसे चार दिन तक बेहोश रखा गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गयी. करीब एक सप्ताह बाद 17 जनवरी को जंगल में उस बच्ची की लाश मिली.
इस मामले में पुलिस ने कुल 7 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से एक को नाबालिग बताया गया. हालांकि, मेडिकल परीक्षण से यह भी सामने आया कि नाबालिग आरोपी 19 साल का है.क्राईम ब्रांच ने इस मामले में ग्राम प्रधान सांजी राम, उसके बेटे विशाल, किशोर भतीजे तथा उसके दोस्त आनंद दत्ता को गिरफ्तार किया था.इस मामले में दो विशेष पुलिस अधिकारियों दीपक खजुरिया और सुरेंद्र वर्मा को भी गिरफ्तार किया गया.आरोपी सांजी राम से कथित तौर पर चार लाख रुपये लेने और महत्वपूर्ण सबूतों को नष्ट करने के मामले में हैड कांस्टेबल तिलक राज एवं एसआई आनंद दत्ता को भी गिरफ्तार किया.
सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2018 को इस मामले को कठुआ से पंजाब के पठानकोट में ट्रांसफर कर दिया था और रोजाना सुनवाई के आदेश दिए थे. जून 2019 में पठानकोट की विशेष अदालत ने इस मामले में तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने सबूत नष्ट करने के आरोप में तीन पुलिस अधिकारियों को 5 साल कैद की सजा भी सुनाई.वहीं, सांजी राम के बेटे विशाल को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया था.
लेकिन आरोपी शुभम सांगरा को नाबालिग मानते हुए अदालत ने उसके मामले को किशोर न्याय बोर्ड में ट्रांसफर कर दिया था.शुभम सांगरा मामले के मुख्य आरोपी सांजी राम का भतीजा है, जो उस मंदिर का केयरटेकर था. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ जम्मू कश्मीर प्रशासन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने भी शुभम सांगरा को नाबालिग मानते हुए ही मामला चलाने के फैसले का समर्थन किया.जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी.