माता-पिता के साथ सामान बेचना बाल श्रम नही, केरल हाईकोर्ट का कार्यरत बच्चों को लेकर महत्वपूर्ण फैसला
नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने अपने माता पिता के साथ सामान बेचने का कार्य करने वाले बच्चों को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि जो बच्चे सामान बेचने में अपने माता—पिता की मदद करते है, उन्हे बालश्रम के अधीन नहीं माना जा सकता.
केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में आश्रय गृह भेजे गये दिल्ली के दो बच्चों को तत्काल प्रभाव से हिरासत से रिहा करते हुए बच्चो को दिल्ली भेजने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है.
गरीब होना अपराध नहीं है
केरल हाईकोर्ट के जस्टिस वी जी अरुण ने बच्चों के माता पिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्चों को अपने माता-पिता के साथ सड़कों पर घूमने की अनुमति देने के बजाय शिक्षित किया जाना चाहिए. लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि कलम और अन्य छोटे सामान बेचने में बच्चों की अपने माता-पिता की मदद करने की गतिविधि बाल श्रम की श्रेणी में कैसे आएगी.
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जस्टिस अरुण ने आगे कहा कि मुझे आश्चर्य है कि बच्चों को उचित शिक्षा कैसे प्रदान की जा सकती है जबकि उनके माता-पिता खानाबदोश जीवन जी रहे हैं.
अदालत ने कहा कि गरीब होना अपराध नहीं है. और इस तरह के मामलो में पुलिस या सीडब्ल्यूसी बच्चों को हिरासत में नहीं ले सकती और उन्हें उनके माता-पिता से दूर नहीं रख सकती है.
नहीं माना जा सकता बालश्रम
बच्चों के माता-पिता ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर करते हुए कहा कि वे खानाबदोश लोग है उनके लिए अपनी आमदनी जुटाना भी बेहद मुश्किल है. दोनो ही बच्चों पेन बेचकर उनकी मदद कर रहे है. चूंकि ऐसी गतिविधि बाल श्रम की श्रेणी में नहीं आती है, इसलिए उनके दोनों बच्चों को रिहा करने के निर्देश दिए जाए.
माता पिता की ओर से अदालत में पेश हुए अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि बच्चों के माता पिता बेहद गरीब है और उनके लिए आवश्यक संसाधन जुटाना भी मुश्किल है. यहां तक के वे अदालती कार्रवाई के लिए इतनी दूरी भी तय नहीं कर सकते है.
वही बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष की ओर से सरकारी अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि पुलिस ने दो बच्चों को सामान बेचते हुए पाया है, चूंकि ऐसी गतिविधि बाल श्रम की श्रेणी में आती है, इसलिए बच्चों को बाल कल्याण समिति के समक्ष ले जाया गया.
दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सामान बेचने में यदि बच्चे अपने माता-पिता की मदद करते है तो उसे बाल श्रम नहीं माना जा सकता.
हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस या सीडब्ल्यूसी बच्चों को हिरासत में नहीं ले सकती है और उन्हें उनके माता-पिता से दूर नहीं रख सकती है. हाईकोर्ट ने बच्चों को हिरासत से रिहा करने और उन्हे दिल्ली भेजने का निर्देश दिया है.
ये है मामला
नवंबर 2022 में केरल पुलिस ने दो बच्चों को मरीन ड्राइव इलाके में पेन और अन्य सामान बेचते हुए पकड़ा. पुलिस ने यह आरोप लगाते हुए कि उन्हें सड़कों पर सामान बेचकर बाल श्रम के लिए मजबूर किया जा रहा, बच्चों को पकड़कर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया और आश्रय गृह भेज दिया गया.
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 2(14) (i)(ii) के अनुसार बच्चों को देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों की श्रेणी में मानते हुए समिति ने आदेश दिया बच्चों को शेल्टर होम की देखरेख और संरक्षण में ही रखा जाएगा.