Screening of BBC Documentary: दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएचडी स्कॉलर को प्रतिबंधित करने के डीयू के आदेश को खारिज किया
नई दिल्ली: बीबीसी की प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री स्क्रीनिंग मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कांग्रेस के छात्र संगठन, एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव लोकेश चुघ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के आयोजन में उनकी संलिप्तता को लेकर एक साल की अवधि के लिए परीक्षा देने से रोक दिया गया था.
समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने गुरुवार को आदेश दिया, अदालत 10 मार्च, 2023 के विश्वविद्यालय के आदेश को रद्द करती है. याचिकाकर्ता का प्रवेश बहाल किया जाता है. चुघ ने बुधवार को उच्च न्यायालय से आग्रह किया था कि 30 अप्रैल को उनके पर्यवेक्षक की सेवानिवृत्ति से पहले उन्हें अपनी पीएचडी थीसिस जमा करने की अनुमति दी जाए.
चुग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति कौरव को अवगत कराया था कि यदि अंतरिम राहत नहीं दी गई तो विश्वविद्यालय बाद में अपनी पसंद का पर्यवेक्षक नियुक्त करेगा. हालांकि, विश्वविद्यालय के वकील एम रूपल ने तर्क दिया कि कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा और अदालत के हस्तक्षेप से गलत संदेश जाएगा.
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डीयू ने सोमवार को उच्च न्यायालय से कहा था कि प्रतिबंधित बीबीसी वृत्तचित्र की अनुमति के बिना प्रदर्शन करने वाले छात्रों की कार्रवाई और निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद विरोध प्रदर्शन आयोजित करना अनुशासनहीनता है. विश्वविद्यालय ने प्रस्तुत किया था, हमने उन छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की, जिन्होंने वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग का आयोजन किया था.
डीयू के वकील ने कहा, चुग घटना के पीछे का मास्टरमाइंड है और उस वीडियो फुटेज से पता चलता है कि वह विश्वविद्यालय परिसर में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में सक्रिय रूप से शामिल था. विश्वविद्यालय के अकादमिक कामकाज को बाधित करने की मंशा से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है, इसका विरोध किया गया था.
चुघ ने अपनी याचिका में दावा किया कि वह विरोध के दौरान वहां नहीं थे, वह मीडिया से बातचीत में भाग ले रहे थे. हालांकि, डीयू ने उन्हें 16 फरवरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने स्क्रीनिंग के दौरान विश्वविद्यालय में कानून व्यवस्था को बाधित किया था.10 मार्च को उन्हें प्रतिबंधित करने के लिए एक ज्ञापन जारी किया गया था.