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आसाराम केस में IPS अजय पाल लांबा को गवाही के लिए तलब करने के मामले पर SC का फैसला सुरक्षित

राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व में जोधपुर के तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा को गवाही के लिए तलब करने का आदेश सुनाया था. इस आदेश पर अंतिम फैसले के लिए शुक्रवार को सभी पक्षो की ओर से बहस की गई. सभी पक्षो की सुनवाई के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुदेश की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : February 10, 2023 8:52 AM IST

नई दिल्ली: आसाराम केस में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा को गवाही के लिए तलब करने के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. नाबालिग से रेप के मामले में आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ आसाराम की अपील में साक्ष्य दर्ज करवाने के लिए तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा को तलब किया गया था.

डीसीपी अजय पाल लांबा को गवाही के लिए तलब करने के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च 2022 से ही अंतरिम रोक लगा रखी है.

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राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व में जोधपुर के तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा को गवाही के लिए तलब करने का आदेश सुनाया था. इस आदेश पर अंतिम फैसले के लिए शुक्रवार को सभी पक्षो की ओर से बहस की गई. सभी पक्षो की सुनवाई के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुदेश की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा लिया है.

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पुस्तक के प्रकाशन से हुई थी शुरूआत

गौरतलब है कि इस पुरे मामले की शुरूआत आईपीएस अजयपाल लांबा की आसाराम केस पर लिखी गई पुस्तक 'गनिंग फॉर द गॉड मैन’ के सामने आने के बाद हुई.

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आसाराम की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में इस पुस्तक में प्रकाशित कुछ अंशो के आधार पर तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा के बयान रिकॉर्ड कराने का अनुरोध किया था. राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम की ओर से पेश किए गए CrPC 391 के प्रार्थना पत्र स्वीकार करते हुए अजय पाल लाम्बा को बयान दर्ज कराने का आदेश दिया था.

राजस्थान सरकार ने किया था विरोध

राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस विरोध किया. राजस्थान सरकार का कहना था कि इस पुरे मामले में निष्पक्ष और फेयर जांच के बाद ही अदालत द्वारा सजा सुनाई गयी थी.

सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष सिंघवी ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि केवल एक पुस्तक के आधार पर इस पुरे मामले को रिओपन (re-open) नहीं किया जा सकता.

आईपीएस लांबा की पुस्तक को लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पुस्तक में कई बार लेखक अपने अनुसार भी दृश्यकरण के लिए शब्दों का प्रयोग करता है. इसलिए एक पुस्तक के आधार केस को रिओपन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

बचाव का मौका

आसाराम के अधिवक्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि तत्कालीन डीसीपी लाम्बा इस केस में जांच अधिकारी थे, डीसीपी लाम्बा ने ही आसाराम को गिरफ्तार किया था और अपराध स्थल की जांच करते हुए वीडियोग्राफी करवाई थी.

आसाराम के अधिवक्ताओं का तर्क था कि आसाराम के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने से पूर्व लांबा ने घटनास्थल का जायजा लिया था, साथ ही वीडियोग्राफी करवाई थी. इस मामले में जितने भी गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे, उनमें तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा के बयान नहीं करवाए गए थे । ऐसे में उन्हें कोर्ट में तलब कर उनके गवाह बयान करवाया जाना आवश्यक है.

अधिवक्ता का तर्क था कि इस मामले को लेकर लिखी गई किताब में उन्होंने इसका जिक्र किया है. अधिवक्ता ने कहा कि इस तथ्य का परीक्षण होना जरूरी है.

ये है मामला

आशाराम पर उनके गुरुकुल की नाबालिग छात्रा से जोधपुर के मणि गांव में स्थित आश्रम में यौन उत्पीड़न का आरोप था. इस शिकायत के बाद जोधपुर पुलिस ने आसाराम को उसके इंदौर आश्रम से 1 सितंबर 2013 को गिरफ्तार किया था.

जोधपुर के एससी एसटी कोर्ट के जज मधुसूदन शर्मा ने 25 अप्रैल 2018 को फैसला सुनाते हुए आसाराम को जीवन के आखिरी सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई थी.