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मृतक कर्मचारी के मामले में सरकार के रवैये से SC ने जताया ऐतराज, UP सरकार पर लगाया 50 हजार का जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एक कर्मचारी के लिए मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी एक परोपकारी योजना है और यह मृतक के उत्तराधिकारी/आश्रित के लिए विस्तारित या तैयार की गई थी. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने समक्ष इस तरह के मामले दायर करने वाले राज्यों के इस चलन की निंदा करता है. क्योकि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे की राशि से वंचित किया जाता है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : February 11, 2023 6:22 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य के एक मृतक कर्मचारी की पत्नी को ग्रेच्युटी देने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के रवैये से नाराजगी जताते हुए उत्तर प्रदेश सरकार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 अगस्त 2009 को मृत हो चुके कर्मचारी के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का लाभ देने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के आदेश से असंतुष्टि जताते हुए सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस तरह के मामले में चुनौती देने और मुकदमे में अनावश्यक देरी करने पर सरकार के रवैये के प्रति आपत्ति जताई.

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पीठ ने कहा कि इस तरह के मामलों में सरकारी रवैये के चलते पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे की राशि से वंचित किया जाता है.पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने समक्ष इस तरह के मामले दायर करने वाले राज्यों के इस चलन की निंदा करता है.

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क्या है मामला

याचिका के अनुसार मृतक कर्मचारी डॉ विनोद कुमार ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन एक संस्थान में 2 जुलाई 2001 को लेक्चर के पद पर कार्यरत हुए थे. सर्विस के दौरान ही 11 अगस्त 2009 को 60 वर्ष पूर्ण होने के करीब एक माह पूर्व उनकी मृत्यु हो गई.

कर्मचारी की मृत्यु के पश्चात मृतक की पत्नी प्रियंका देवी ने अपने मृत पति की ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए आवेदन, लेकिन विभाग ने इस आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया उसके पति ने सेवा में रहते हुए 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति का विकल्प नहीं चुना था.

विभाग के आदेश के खिलाफ मृतक की पत्नी ने इलाबाहाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए तर्क पेश किया कि 16 सितंबर, 2009 के सरकारी आदेश के अनुसार, प्रतिवादी का मृत पति 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के विकल्प का प्रयोग करने का हकदार था. सरकार का यह आदेश 1 जुलाई, 2010 तक उपलब्ध था, लेकिन इससे पहले कि मृतक कर्मचारी इस विकल्प का प्रयोग कर पाता, 11 अगस्त, 2009 को उसकी मृत्यु हो गई थी.

याचिका में कहा गया कि चूंकि इस मामले में मृतक कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के विकल्प का प्रयोग करने की नियत तारीख से पहले मृत्यु हो गई है इसलिए   उसकी पत्नी मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी के लाभ की हकदार होगी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस तथ्य को स्वीकार करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह मृतक की पत्नी और याचिकाकर्ता को मृत व्यक्ति के ग्रेच्युटी की गणना कर भुगतान करें.

सरकार का विरोध

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी.

सुप्रीम कोर्ट में उत्तरप्रदेश सरकार ने अपनी याचिका के पक्ष में तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने इस तर्क पर गौर नहीं किया कि मृत कर्मचारी ने जीवित रहते सेवानिवृत्ति के विकल्प का प्रयोग करने में विफल रहा है और  इसलिए मृत कर्मचारी की पत्नी को इस मामले में मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का लाभ नहीं दिया जा सकता.

सरकार ने अपने पक्ष में तर्क में इस बात पर जोर दिया कि मृतक ने 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति का विकल्प नहीं चुना था और इस तरह की मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का लाभ प्राप्त करने के लिए 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के विकल्प का प्रयोग करना अनिवार्य था.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के तर्क को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि मृतक कर्मचारी की जन्म तिथि 1 जुलाई 1951 के अनुसार 2 जुलाई 2001 को सेवा में आने के चलते वह 30 जून 2011 को अपनी आयु के 60 वर्ष पूर्ण कर चुके होंगे.

पीठ के अनुसार सरकारी आदेश 16 सितंबर 2009 के अनुसार मृतक कर्मचारी इससे पूर्व की वह 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के अपने विकल्प का प्रयोग कर पाते, दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु हो गई.

पीठ ने कहा कि तथ्यों के अनुसार वास्तव में सरकारी आदेश से पहले 11 अगस्त 2009 को ही उनकी मृत्यु हो गई थी, जबकि सरकार का आदेश 16.9.2009 का है.

क्यो लगाया जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए तर्क और वास्तविक तथ्यों पर ध्यान नहीं देने पर नाराजगी जताई.

पीठ ने अपने फैसले में कहा यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि अपीलकर्ता सरकार की ओर से यह मामला नहीं है कि यदि मृतक कर्मचारी ने विकल्प का प्रयोग किया होता, तब भी वह योजना के तहत मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी के लाभ का हकदार नहीं होता.

पीठ ने कहा कि एक कर्मचारी के लिए मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी एक परोपकारी योजना है और यह प्रतिवादी को मृतक के उत्तराधिकारी/आश्रित के लिए विस्तारित होने के लिए तैयार की गई थी.

पीठ ने सरकार की अपील को लेकर भी ऐतराज जताते हुए कहा कि हम शीर्ष अदालत के समक्ष इस तरह के मामलों को दायर करने वाले राज्य के चलन की निंदा करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सरकार की अपील को खारिज करने के आदेश दिए है. साथ ही 50 हजार का जुर्माना भी लगाया, जिसे सरकार को मृतक कर्मचारी की पत्नी को चार सप्ताह के भीतर भुगतान करना होगा.