संविधान ने दिए है देश के प्रत्येक बच्चे को विशेष अधिकार
नई दिल्ली, हमारे देश के संविधान ने केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि मां के गर्भ में पल रहे भ्रूण के भी अधिकार तय किए है. ऐसे में हमें ना केवल बच्चों के अधिकारों के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है बल्कि बच्चों को भी उनके अधिकारों की जानकारी देना बेहद जरूरी है.
हमारे देश ने बच्चों को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा 11 दिसम्बर 1992 को जारी किए गए कन्वेंशन का समर्थन किया, जिसके द्वारा भारत ने बच्चों के प्रति अपने उद्देश्यों की प्रतिबद्धता दिखाई.
अब तक आपने महिलाओं के अधिकार से लेकर आम नागरिकों के बारे में खूब पढा और जाना भी है, लेकिन हम आपको बताने जा रहे है बच्चो के अधिकारों के बारे में. लेकिन यह समझने के लिए कि बच्चों को क्या अधिकार दिए गए, हमें पहले यह समझने की जरूरत है कि कानून के अनुसार बच्चे कौन हैं?
Also Read
- कैसे मिलता है अपराध पीड़ितों को सरकार से मुआवजा, जानिए क्या है नियम
- 'दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराने की जरूरत', बाल श्रमिकों की रक्षा पर मानवाधिकार आयोग की बड़ी पहल
- Shraddha Murder Case: पुलिस चार्जशीट की सामग्री को नहीं दिखा सकेगी मीडिया, Delhi HC ने चार्जशीट सामग्री के प्रसारण पर लगाई रोक
कौन है बच्चा
हमारे देश में बच्चा कौन है इसकी पहचान केवल शारीरिक तौर पर नहीं की गयी है बल्कि अलग अलग कानून के अनुसार अलग अलग बताई गयी है.
पॉक्सो एक्ट यानी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के अनुसार बच्चों को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है. बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 2016 के अनुसार एक बच्चे को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने 14 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की हैं.
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के में पुरुष 21 वर्ष से कम आयु का है और कोई महिला 18 वर्ष से कम आयु की है तो भी वे बच्चे की श्रेणी में है. जबकि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अनुसार भी एक बच्चा वह है जो 18 वर्ष से कम आयु का है लेकिन आयु के बहुमत अधिनियम 1875 के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति नाबालिग है.
अनुच्छेद में अधिकार
हमारे देश के संविधान में बच्चों को कमजोर नहीं माना गया है बल्कि वो देश के भविष्य के तौर पर सरकार और माता पिता की जिम्मेदारी माने गए है. संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 15(3), 19(1)(ए), 21, 21(ए), 23(1), 24, 39(इ), 39 (एफ), और 45 में कई महत्वपूर्ण और खास प्रावधान करते हुए अधिकार प्रदान किए गए है.
इसी के चलते बच्चों के लिए मां बाप की जिम्मेदारी, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं, अच्छा जीवन स्तर, विकलांग बच्चों की विशेष देखभाल, नशीले पदार्थों से बचाव, मुफ्त शिक्षा, अनाथ बच्चों की सुरक्षा, बाल श्रमिकों की सुरक्षा, मानव तस्करी से सुरक्षा से लेकर यौन शोषण से बचाव के अधिकार मिले है.
जीवन जीने का अधिकार
हमारे देश के संविधान के अनुसार बच्चों का सबसे पहला अधिकार है उनके जीवन जीने का अधिकार. इसी अधिकार के तहत ही अधिकांश अदालतों ने भी गर्भ में पल रहे भ्रूण के भी अधिकार माने है.
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत देश के समस्त बच्चों को जीवन जीने का अधिकार है. इस अनुच्छेद के तहत सिर्फ जीने का अधिकार ही नहीं बल्कि स्वस्थ और अच्छा जीवन जीने का अधिकार दिया गया है.एक समृद्ध और अच्छे जीवन जीने के लिए स्वच्छ पानी, पर्याप्त भोजन और अन्य बुनियादी सुविधाओं को आवश्यक बताया गया है.
शिक्षा अधिकार
हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 21 ए खासतौर से बच्चों के पक्ष में बनाया गया अनुच्छेद है जिसमें देश के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा का अधिकार तय किया गया है.
बच्चों की शिक्षा के लिए राज्य यानी सरकार की जिम्मेदारी तय की है. जिसके अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है, जो उनके घर से 1 किमी के दायरे में उपलब्ध होनी चाहिए.
इस अधिकार में बेहतर शिक्षा के लिए एक कुशल शिक्षक और छात्रों के लिए एक अनुपात भी निर्धारित किया गया है. साथ ही पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय रखने और उचित शिक्षा के लिए अन्य बुनियादी सुविधाएं जैसे स्वच्छ पानी, उचित कक्षा कक्ष और अच्छे शिक्षक प्रदान करने का भी अधिकार देता है.
समानता का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को कानून द्वारा समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए, चाहे वे बच्चे ही क्यों ना हो. इस कानून के अनुसार देश के बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.
धर्म, आयु, लिंग, नस्ल, जाति या जन्म स्थान के आधार देश के किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता. संविधान का अनुच्छेद 15 देश के प्रत्येक नागरिक के साथ किसी तरह के भेदभाव को रोकता है.
सुरक्षा अधिकार
हमारे देश के संविधान ने ना केवल बच्चों को मानव तस्करी से बचाने के लिए व्यवस्था की है बल्कि बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर करने पर रोक का भी प्रावधान किया है.
संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 के तहत बच्चों को मानव तस्करी से बचाने और जबरन भीख मांगने के लिए मजबूर करने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की गयी है.
संविधान का अनुच्छेद 39 (एफ) बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य की जिम्मेदारी तय करता है. इस अनुच्छेद के तहत देश के प्रत्येक बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए राज्य को हर आवश्यक साधन मुहैया कराना होगा. साथ ही राज्य को हर उस बुराई और कृत्य से भी बच्चों को बचाना होगा जो उनके विकास में बाधक है.
संविधान के अनुच्छेद 45 के तहत देश के प्रत्येक बच्चे जो छह साल से कम उम्र के है, उन्हे आर्थिक रूप से वित्त पोषित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व/ जिम्मेदारी तय की गयी है.
अपराध के बाद भी अधिकार
देश के संविधान के अनुसार उन बच्चों के भी अधिकार दिए गए है जो परिस्थितियों के चलते अपराध की ओर मुड़ जाते है. कई बार बच्चों को मिले इन अधिकारों का दुरुपयोग भी सामने आया है, इसके बावजूद मजबूरी या गलत परिस्थितियों के चलते अपराध में शामिल हुए बच्चों के लिए ये अधिकार उनके जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए आवश्यक है.
यातना देने और दासता पर रोक — संविधान ने हमारे देश में किसी भी तरह से बच्चो को गुलाम बनाने या उनसे दासता कराने पर रोक लगाई है. यहां तक कि कानून के अनुसार भी बच्चे को कठोर दण्ड, यातना और गैर कानूनी कैद में रखने पर भी पूर्णतया रोक है.
संविधान के अनुसार देश के किसी भी बच्चे को जो 18 साल से कम आयु का हो, उसे अदालत द्वारा आर्थिक दण्ड,उम्रकैद जैसी सजा नहीं दी जा सकती.हमारा संविधान बाल कैदियों के साथ क्रूरता, कठोरता का व्यवहार करने से भी रोकता है.
संविधान के तहत अपराध करने वाले बच्चों के सुधारने के लिए किशोर न्याय की व्यवस्था की गयी है. जिसके तहत प्रत्येक बच्चे को जिसने अपराध किया हो उसके सुधार के लिए किशोर न्याय गृह में रहने का अधिकार है. अपराध में संलिप्त बच्चों को समाज की मुख्यधारा से वापस जोड़ने के लिए ही किशोर न्याय को संविधान में महत्व दिया गया है.
इस खबर को तैयार करने में हमारे इंटर्न जीशान आदिल ने सहयोग कियाा है.