Advertisement

Same Sex Marriage: समलैंगिक जोड़ों को दिए जा सकते हैं कुछ अधिकार, केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में बदला रूख

समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर Supreme Court की 5 सदस्य संविधान पीठ सुनवाई कर रही है.सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की ओर से सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने समिति को लेकर जानकारी दी है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : May 3, 2023 1:31 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने जवाब पेश करते हुए कहा है कि शादी को मान्यता दिए बिना समलैंगिक जोड़ों को कुछ अधिकार दिए सकते हैं, बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने के मामले में रुख कुछ नरम नज़र आया है.

केन्द्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिए बिना ऐसे जोड़ों को कुछ अधिकार देने के मामले पर सरकार विचार करेगी और केंद्र इसके लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित करेगी.

Advertisement

सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि समलैंगिक विवाह का मसला इतना सरल नहीं है और सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट में हल्का बदलाव करने से बात नहीं बनेगी.

Also Read

More News

सरकार के जवाब पर सीजेआई की पीठ ने भी संतोष जताया और याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे सरकार को सुझाव सौपें.

Advertisement

पहले किया था विरोध

एसजी के अनुसार यह समिति कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठन कि जाएगी जो याचिकाकर्ता से मिले सुझाव पर ध्यान देगी.

समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.

गौरतलब है कि पिछली सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने में सुप्रीम कोर्ट दायर किए हलफनामें में सभी राज्यों और केन्द्र शाषित प्रदेशो को भी पक्षकार के रूप में शामिल करने का अनुरोध किया है.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार के इस हलफनामे के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए खारिज कर दिया था.

संविधान पीठ कर रही सुनवाई

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने 13 मार्च को मामले पर सुनवाई के दौरान इस मामले को संविधान पीठ को भेजते हुए कहा था कि याचिका उन अधिकारों से संबंधित मुद्दों को उठाती है जो प्रकृति में संवैधानिक हैं और इसलिए इस मामले की सुनवाई 5 जजों की संविधान पीठ द्वारा की जानी चाहिए.

सीजेआई ने कहा था​ कि "इस अदालत के समक्ष उठाए गए बहुत सारे मुद्दे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्राकृतिक संवैधानिक अधिकार के अनुसार शादी करने के अधिकार से संबंधित हैं. हमारा मानना है कि संविधान के 145 (3) के तहत इस अदालत के 5 जजों द्वारा यहां मुद्दों का समाधान किये जाने के लिए हम सुनवाई का निर्देश देते हैं.इस मामले को एक संविधान पीठ के समक्ष पोस्ट किया जाए.

अनुच्छेद 145 (3) सुप्रीम कोर्ट को यह शक्तियां प्रदान करता है कि इस संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले को तय करने के उद्देश्य से सुनवाई करने वाले जजों की संख्या 5 होगी.

केन्द्र ने किया था विरोध

समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता का केंद्र सरकार ने सख्त विरोध किया था. सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए अपने जवाब मेंं केंद्र सरकार ने कहा कि भागीदारों के रूप में एक साथ रहना और समान लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा नहीं है.

केन्द्र सरकार की ओर पेश हुए एसजी तुषार मेहता ने कहा था कि यह "सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है और इस मामले में संसद में ही बहस हो सकती है.

केन्द्र का कहना है कि अगर समलैंगिक विवाह होता है और विवाहित जोडा एक बच्चे को गोद लेता है तो उस बच्चे की मानसिक अवस्था क्या होगी. मेहता ने कहा कि यह भी समझने की जरूरत है क्योंकि एक बच्चा महिला को मां के तौर पर और पुरुष को पिता के नजरिए से देखता है.

केंद्र ने शीर्ष अदालत में दाखिल अर्जी में याचिकाओं को योग्यता के आधार पर खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि रिश्तों को कानूनी मान्यता देने या अधिकार सृजित करने का काम सक्षम विधायिका का है, न कि न्यायपालिका का.