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Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला रखा सुरक्षित

गुरूवार को सभी पक्षो की बहस सुनने के बाद संविधान पीठ की ओर से सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ फैसला सुरक्षित रखने की घोषणा की.

Written By Nizam Kantaliya | Published : May 11, 2023 4:44 PM IST

नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ ने गुरूवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है.

गुरूवार को सभी पक्षो की बहस सुनने के बाद संविधान पीठ की ओर से सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ फैसला सुरक्षित रखने की घोषणा की.

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CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.

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सीजेआई की अध्यक्षता में इस 5 सदस्य संविधान पीठ ने अप्रेल माह में 18, 19, 21, 25, 26 और 27 तारीखों में सुनवाई की. वही मई माह में 3, 10 और 11 मई को सुनवाई करते हुए कुल 10 दिन तक सुनवाई की है.

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संविधान पीठ ने दस दिनों की सुनवाई के बाद गुरुवार, 11 मई को शाम 4.17 बजे समलैगिंग विवाह के कानूनी मान्यता (Same Sex Marriages legal recognition) की मांग वाली इन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया.

समलैगिंग विवाह के मामले की शुरूआत

साल 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हैदराबाद के रहने वाले गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने सबसे पहले समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.

10 साल से रिश्ते में रह रहा यह समलैंगिक जोड़ा कानूनी तौर विवाह की मान्यता चाहता था.साल 2022 में इस कपल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था.

इस याचिका के साथ ही देश की अलग-अलग अदालतों में भी करीब 20 याचिकाएं दायर की गईं थी.

सुप्रिया चक्रवर्ती की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करने के साथ ही देशभर की याचिकाओं को एक साथ क्लब करते हुए संविधान पीठ को भेजने की बात कही.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी तक सभी याचिकाओं पर अपना संयुक्त जवाब दाख़िल करने के निर्देश देते हुए 13 मार्च तक सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध करने के आदेश दिए.

सीजेआई ने इस मामले को 3 सदस्यों की पीठ को सौप ​दिया.

3 सदस्यों की पीठ ने इ मामले को संविधान पीठ का मामला बताते हुए इन याचिकाओं के समलैंगिक विवाह को 'मौलिक मुद्दा' बताते हुए संविधान पीठ को रेफर कर दिया.

18 अप्रैल 2023 मुख्य न्यायाधीश डॉ डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने  इस मामले पर सुनवाई शुरू की.

किसने किसका रखा पक्ष

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी, वकील अरुंधति काटजू ने दलीले पेश की.

वही केंद्र सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा.

पक्ष और विपक्ष

केद्र सरकार के साथ साथ इस्लामिक धार्मिक संस्था जमीयत-उलमा-ए-हिंद और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी विरोध किया.

दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस मामले में याचिकाओ का समर्थन किया.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अस्पष्ट तौर पर विरोध करते हुए इस मामले को संसद के लिए छोड़ने का अनुरोध किया.हालालांकि BCI के इस बयान की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने निंदा की.

कब क्या हुआ

25 नवंबर, 2022: सुप्रीम कोर्ट में दो समलैंगिक जोड़ों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए याचिका दायर की.

14 दिसंबर, 2022: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह से जुड़ी एक अन्य याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया.

6 जनवरी, 2023 सुप्रीम कोर्ट ने देश के अलग अलग हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांफसर किया.

12 मार्च, 2023 सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं के विरोध में केन्द्र सरकार ने हलफनामा दायर कर विरोध जताया.

13 मार्च 2023 सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्य पीठ ने मामले को मौलिक मुद्दा बताते हुए 5 सदस्य संविधान पीठ को रेफर किया.

1 अप्रैल, 2023— याचिकाओं के विरोध में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर विरोध जताया.

6 अप्रैल 2023 — दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने हस्तक्षेप आवेदन दायर करते हुए अधिकारों का समर्थन किया.

15 अप्रैल, 2023— मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 5 सदस्य संविधान पीठ का गठन किया.

17 अप्रैल 2023 — इस मुद्दे पर एनसीपीसीआर ने विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनने के लिए आगे आया.

18 अप्रैल 2023— सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की.

11 मई 2013— सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा.