Advertisement

Same Sex Marriage: असम, आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने किया समलैंगिक विवाह कानूनी मान्यता का विरोध

Digitise Records of Criminal Trials and Civil Suits

समलैगिंग विवाह की कानूनी मान्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि भारतीय कानून किसी व्यक्ति को वैवाहिक स्थिति के बावजूद बच्चे को गोद लेने की अनुमति देते हैं.

Written By Nizam Kantaliya | Updated : May 10, 2023 4:32 PM IST

नई दिल्ली: केन्द्र सरकार की ओर से देशभर के राज्यों को लिखे गए पत्र के जवाब में देश के कई राज्यों ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता का विरोध किया है. असम, आंन्ध्रप्रदेश और राजस्थान राज्यों ने अपने केंद्र सरकार के पत्र के जवाब में अपने विचार व्यक्त करते हुए इस तरह के विवाह की वैधता का विरोध किया है.

आंध्र प्रदेश राज्य ने अपने जवाब में कहा है कि उसने राज्य में विभिन्न धर्मों के धार्मिक प्रमुखों से परामर्श किया था, जिनमें से सभी ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दिए जाने का विरोध किया है.

Advertisement

असम और राजस्थान ने भी कुछ इसी तरह का जवाब केन्द्र सरकार को भेजा है.

Also Read

More News

राजस्थान राज्य ने अपने जवाब में कि समलैंगिक विवाह सामाजिक ताने-बाने में असंतुलन पैदा करेगा, जिसके सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था के लिए दूरगामी परिणाम होंगे.

Advertisement

केन्द्र सरकार के पत्र के जवाब में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम राज्यों ने कुछ ओर समय मांगा है.

भारतीय कानून देता है अनुमति

समलैगिंग विवाह की कानूनी मान्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि भारतीय कानून किसी व्यक्ति को वैवाहिक स्थिति के बावजूद बच्चे को गोद लेने की अनुमति देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून मानता है कि एक “आदर्श परिवार” के लिए अपने जैविक बच्चे होने के अलावा भी स्थितियां हो सकती हैं.

कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान एनसीपीसीआर की ओर से पेश कि गयी दलीलों में कहा गया है कि लिंग की अवधारणा “तरल” हो सकती है, लेकिन मां और मातृत्व नहीं.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की ओर से सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ के समक्ष सुनवाई में कहा गया कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, विभिन्न क़ानूनों में कानूनी स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि यह कई निर्णयों में आयोजित किया गया है कि गोद लेना बच्चे का मौलिक अधिकार नहीं है.

NCPCR की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि “विषमलैंगिक व्यक्तियों के लिए स्वाभाविक रूप से पैदा हुए बच्चों के हितों और कल्याण की रक्षा के लिए हमारे कानूनों की पूरी संरचना विषमलैंगिक और समलैंगिकों के साथ अलग व्यवहार करने में न्यायोचित है.

पीठ ने एएसजी के इस तर्क पर सहमति जताई की एक बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है.

CJI ने देखा कि हमारे कानून यह मानते हैं कि आप कई कारणों से इसे अपना सकते हैं.

सीजेआई ने कहा कि एक अकेला व्यक्ति भी बच्चे को गोद ले सकता है. वह एकल यौन संबंध में हो सकता है.आप जैविक जन्म के लिए सक्षम होने पर भी गोद ले सकते हैं। जैविक जन्म लेने की कोई बाध्यता नहीं है।”

सुनवाई से CJI को अलग करने की मांग, याचिका खारिज

समलैगिंग विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर लगातार सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की संविधान पीठ से CJI चंद्रचूड़ को अलग करने की मांग की गयी है.

बुधवार को इस मांग को लेकर दायर की गयी याचिका को सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने ही खारिज कर दिया है.

एंसन थॉमस ने याचिका दायर कर मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को याचिकाओं की सुनवाई से अलग करने का अनुरोध किया था.

याचिकाकर्ता ने अपने अनुरोध के पक्ष में तर्क किया मुख्य न्यायाधीश को खुद को मामले से अलग कर लेना चाहिए.

याचिकाकर्ता के इस अनुरोध का केन्द्र सरकार के सॉलिस्टर जनरली तुषार मेहता ने भी विरोध किया.  जिसके बाद सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया.