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बर्खास्त IPS संजीव भट्ट को SC से बड़ा झटका, Justice Shah के सुनवाई से अलग होने और HC में अतिरिक्त सबूत पेश करने की याचिका खारिज

IPS संजीव भट्ट ने इस याचिका के जरिए वर्ष 1990 के हिरासत में मौत मामले में गुजरात हाईकोर्ट में दायर उनकी अपील की सुनवाई में अतिरिक्त सबूत पेश करने का अनुरोध किया था. साथ ही सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस एम आर शाह के शामिल होने पर पूर्वाग्रह की आशंका जताई थी.

Written By Nizam Kantaliya | Published : May 10, 2023 2:09 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुलिस सेवा के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट्ट की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है. IPS संजीव भट्ट ने इस याचिका के जरिए वर्ष 1990 के हिरासत में मौत मामले में गुजरात हाईकोर्ट में दायर उनकी अपील की सुनवाई में अतिरिक्त सबूत पेश करने का अनुरोध किया था.

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करने वाली पीठ से सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस एम आर शाह को करने का अनुरोध करने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया है.

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अदालत ने कहा कि गवाहों के बयान पर सुप्रीम कोर्ट की कोई भी टिप्पणी अंततः अपील में दोनों पक्षों के अधिकारों को प्रभावित कर सकती है.

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कानून और गुण-दोष के आधार फैसला

पीठ ने अपने आदेश में कहाा कि यह देखा गया है कि हाईकोर्ट ने अपील का फैसला कानून और गुण-दोष के आधार और ट्रायल कोर्ट द्वारा ट्रायल के दौरान रिकॉर्ड पर सामने आए साक्ष्यों की पुन:समीक्षा पर तय किया है.

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इससे पूर्व जस्टिस एम आर शाह ने इस मामले पर सुनवाई कर रही पीठ से खुद को अलग करने से भी इंकार कर दिया.

IPS संजीव भट्ट की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि इस मामले में उन्हे पूर्वाग्रह की उचित आशंका है, क्योंकि गुजरात हाईकोर्ट के जज के रूप में जस्टिस एम आर शाह ने प्राथमिकी से जुड़ी उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके मुवक्किल को फटकार लगाई थी.

हालांकि, गुजरात सरकार और शिकायतकर्ता के वकीलों ने भट्ट की याचिका का विरोध किया था. मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

भट्ट के खिलाफ मामला

गुजरात की जामनगर सत्र अदालत ने वर्ष 2019 में पूर्व आईपीएस अधिकारी को 1990 के हिरासत में मौत के मामले में दोषी ठहराते हुए आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

घटना के समय भट्ट जामनगर में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यरत थे और उन्होंने इलाके में दंगे की एक घटना के लिए 100 से अधिक लोगों को अपनी हिरासत में लिया था.

हिरासत में लिए गए लोगो में से एक व्यक्ति की जमानत पर रिहा होने के बाद किडनी फेल होने से मौत हो गयी थी. मृतक हिरासत के दौरान 9 दिन तक पुलिस के अधीन था.

इस मामले मेंं पीड़ित परिवार की ओर से भट्ट और अन्य अधिकारियों के खिलाफ हिरासत में मौत के लिए एक आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी.

इस शिकायत पर मजिस्ट्रेट अदालत ने वर्ष 1995 में संज्ञान लेते हुए भट्ट पर आईपीसी के तहत हत्या, गंभीर चोट पहुंचाने, आपराधिक धमकी और उकसाने के आरोप तय किए गए थे.

वर्ष 2019 में इस मामले में जामनगर सत्र अदालत ने आईपीएस भट्ट को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनवाई.