क्या संविधान को बदल देना आसान है? जानिए नेताओं के दावे में कितनी सच्चाई है?
चुनावी सरगर्मियों में एक-से- बढ़कर-एक दावे हो रहे हैं. हर राजनीतिक दल लोगों को लुभाने में लगे हैं. ऐसे में नेताजी खुद को बेहतर साबित करने के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों पर छींटाकशी भी जारी है. अफवाहों का बाजार गरम है. कुछ पार्टियों पर आरोप लग रहे हैं कि अगर वे सत्ता में दोबारा से आएंगे, तो संविधान को बदल देंगे. हालांकि, प्रधानमंत्री ने अपने रैलियों में जमकर इन आरोपों को खारिज किया है. प्रधानमंत्री ने कहा, कि संविधान को पूरी तरह बदलना संभव नहीं है. कांग्रेस ने भी 'संविधान बचाओ' (Save Constitution) पहल को चला रही है. पहले संविधान में संशोधन के नियम समझ लेते हैं. किसी भी चीज को बदलना हो तो संशोधन करना पड़ेगा. संविधान की भाषा में बदलना’ मतलब संशोधन करना.
संशोधन होता कैसे है?
लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत चाहिए. इसे कहते हैं स्पेशल मेजोरिटी. इसके बाद 50% विधानसभा में पारित करना होगा. 42 वां संविधान संशोधन ऐसे ही हुआ था. धर्मनिरपेक्षता भी तभी जोड़ा गया था.
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
ये तो हो गया नियम. अब एक जजमेंट बताते हैं. केशवानंद भारती जजमेंट. इसमें कहा गया था कि आप संविधान के बेसिक स्ट्राक्चर को छोड़कर बाकी चीजों में संशोधन कर सकते हैं. अब आप सोच रहे होंगे ये बेसिक स्ट्राक्चर क्या है? बेसिक स्ट्राक्चर में मूलभूल अधिकार, धर्मनिरपेक्ष, न्यायपालिका पुनर्विचार जैसी चीजें शामिल हैं.
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यानी कुल मिलाकर बात ये है कि अगर कोई संविधान में संशोधन करना चाहता है तो भी वो बेसिक स्ट्राक्चर से छेड़छाड़ नहीं कर सकता. मान लो, कोई बिल संसद, विधानसभा में पास भी हो जाए तो भी इसे सुप्रीम कोर्ट के टेस्ट से गुजरना पड़ेगा जो कि इतना आसान नहीं है. अगर इतना आसान होता न तो सभी सरकारें अपने फायदे के मुताबिक संविधान बदल लेतीं.