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देशद्रोह कानून को लेकर पूर्व सीजेआई ने दोहराया- सरकार की निष्पक्ष आलोचना करना देशद्रोह नहीं

पूर्व सीजेआई जस्टिस ललित उस बात को दोहरा रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2016 को भी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दोहराया था. जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जिस पीठ ने ये आदेश दिया था, जस्टिस यूयू ललित उस दो सदस्य पीठ के दूसरे सदस्य थे.

Written By Nizam Kantaliya | Published : February 11, 2023 11:21 AM IST

नई दिल्ली: देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस उदय उमेश ललित ने एक बार से कोर्ट की उस बात को दोहराया है जो उन्होने करीब 6 वर्ष पूर्व अदालत में जज रहते हुए कहा था.

शुक्रवार शाम को नई दिल्ली में आयोजित एक अवार्ड समारोह को संबोधित करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा है कि सरकार की निष्पक्ष आलोचना करना हर पत्रकार का अधिकार है, यह देशद्रोह नहीं है.समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस ललित ने कहा कि निष्पक्ष आलोचना करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है और यह प्रत्येक पत्रकार का भी पोषित अधिकार है.

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पूर्व सीजेआई ने इससे एक कदम आगे कहा कि मुझे सरकार की नीतियों और कृत्यों पर टिप्पणी करने का पूरा अधिकार है. अगर मैं ऐसा करता हूं, तो यह राजद्रोह नहीं है.

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पूर्व सीजेआई जस्टिस ललित उस बात को दोहरा रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2016 को भी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दोहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि सरकार की आलोचना पर किसी के खिलाफ देशद्रोह या मानहानि का मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता.

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कोर्ट में भी यहीं कहा था

जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जिस पीठ ने ये आदेश दिया था, जस्टिस यूयू ललित उस दो सदस्य पीठ के दूसरे सदस्य थे.

जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने एनजीओ कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि 'कोई व्यक्ति सरकार की आलोचना करता है तो वह देशद्रोह या मानहानि कानून के तहत अपराध नहीं करता. IPC की धारा 124 (ए) के तहत देशद्रोह लगाने के लिए शीर्ष कोर्ट के पहले के फैसले के खास दिशा निर्देश का पालन करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने देश के सभी अथॉरिटी को केदारनाथ सिंह बनाम बिहार मामले में 1962 में संविधान पीठ द्वारा दी गई व्यवस्था का पालन करने के लिए कहा था.

ये अलग बता है इस पीठ ने देशद्रोह के दुरुपयोग के दर्ज होने वाले मुकदमों को लेकर सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को आदेश देने से इन्कार कर दिया.

क्या कहता है 1962 का फैसला

देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1962 में 20 जनवरी को केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के केस में देशद्रोह को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कमेंट भर से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता.

बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण को लेकर देशद्रोह का मामला दर्ज किया था. पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के राजद्रोह के केस पर रोक लगा दी. बिहार सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई Bhuvaneshwar Prasad Sinha ने इस मामले में कानूनी पहलुओं को देखते हुए 5 सदस्य संविधान पीठ का गठन किया था. पूर्व सीजेआई Bhuvaneshwar Prasad Sinha की अध्यक्षता में ही 5 सदस्य पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया था.

पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर टिप्पणी करने भर से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता. देशद्रोह कानून का इस्तेमाल तब ही हो जब सीधे तौर पर हिंसा भड़काने का मामला हो. पीठ ने कहा देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा या असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.