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Rajya Sabha ने पारित किया Mediation Bill 2021, जानें क्या हैं इसके जरूरी प्रावधान

The Mediation Bill 2021

राज्य सभा में 2 अगस्त, 2023 को 'मध्यस्थता विधेयक, 2021' पारित कर दिया गया है। इस विधेयक को क्यों पारित किया गया है और इसके अहम बिंदु क्या हैं, आइए जानते हैं...

Written By Ananya Srivastava | Published : August 3, 2023 3:47 PM IST

नई दिल्ली: राज्य सभा में कुछ दिन पहले कई विधेयक पेश किए गए थे जिनमें 'मध्यस्थता विधेयक, 2021' (The Mediation Bill, 2021) भी शामिल है। इस विधेयक को एक वॉयस नोट के साथ पारित किया गया था जब विपक्ष के नेता मणिपुर मुद्दे पर चर्चा और इसपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग करते हुए वॉकआउट कर रहे थे।

मध्यस्थता विधेयक, 2021 के अहम बिंदु या जरूरी प्रावधान क्या हैं और इसे राज्य सभा में किस तरह पारित किया गया है, आइए जानते हैं...

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राज्यसभा में पारित हुआ मध्यस्थता विधेयक, 2021

बता दें कि इस विधेयक को राज्य सभा में अगस्त, 2021 में पेश किया गया था जिसके बाद इसे 'स्टैंडिंग कमिटी ऑन लॉ एंड पर्सनेल' (Standing Committee on Law and Personnel) को रेफर कर दिया गया था। इस विधेयक को अब एक बार पारित करवाने के उद्देश्य से राज्यसभा में कानून मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल (Arjun Singh Meghwal) द्वारा पेश किया गया; इसपर कुल नौ सदस्यों ने चर्चा की।

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कानून मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल ने सदन में विधेयक को पेश करते हुए यह कहा कि इसके तहत वो एक तटस्थ थर्ड पार्टी का गठन करेंगे जो 'भारत का मध्यस्थता परिषद' (Mediation Council of India) कहलाएगा। अर्जुन सिंह मेघवाल ने यह भी बताया कि यह विधेयक मध्यस्थता की प्रक्रिया को एक समयबद्ध तंत्र (Time-bound Mechanism) के रूप में परिवर्तित करता है जिससे पक्षकारों के समय और पैसों की बचत हो सके।

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बता दें कि यह विधेयक अभियोग से पहले होने वाली मध्यक्षता (Pre-Litigation Mediation) को स्वैच्छिक बनाता है, जो पहले अनिवार्य थी।

भारत में मध्यस्थतता को लेकर प्रावधान

अदालत द्वारा विवादों को सुलझाया जाता है लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसके अलावा भी न्याय पाने हेतु कुछ प्रक्रियाएं हैं। 'वैकल्पिक विवाद समाधान' (Alternate Dispute Resolution) उन प्रक्रियाओं की बात करता है जिनके जरिए अदालत के बाहर भी विवादों का समाधान निकाला जा सकता है और इसमें मध्यस्थतता भी शामिल है।

फिलहाल भारत में मध्यस्थता का निर्देश आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Criminal Procedure, 1908) के तहत अदालत द्वारा दिया जा सकता है, यह निजी तौर पर भी किया जा सकता है अगर किसी मसौदे में मध्यस्थता का क्लॉज हो, मध्यस्थता का इस्तेमाल तब भी हो सकता है अगर इसका जिक्र किसी विशिष्ट कानून में हो।

The Mediation Bill, 2021 के जरूरी प्रावधान

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मध्यस्थता विधेयक, 2021 को मध्यस्थता, विशेष रूप से संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देना और मध्यस्थता द्वारा हुए समझौतों को लागू करने के लिए एक तंत्र प्रदान करना है। आइए इस विधेयक के अहम बिंदु या जरूरी प्रावधानों के बारे में जानते हैं-

  • अभियोग से पहले मध्यस्थता (Pre-Litigation Mediation): किसी भी अदालत या ट्राइब्यूनल का दरवाजा खटखटाने से पहले पक्षकारों को अपने सिविल या आपराधिक विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर वो इससे किसी समझौते पर नहीं भी पहुंचते हैं, कोर्ट या ट्राइब्यूनल किसी भी स्तर पर पार्टियों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकता है यदि वे इसके लिए अनुरोध करते हैं।
  • इन विवादों के लिए मध्यस्थता नहीं है विकल्प (Disputes which are not fit for Mediation): इस विधेयक में ऐसे विवादों की सूची दी गई है जिन्हें सुलझाने के लिए मध्यस्थता का सहारा नहीं लिया जा सकता है, जैसे, मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति के खिलाफ किए गए दावे, आपराधिक अभियोजन से जुड़े मामले, थर्ड पार्टी के अधिकारों को प्रभावित करने वाले मामले। बता दें कि इस सूची को केंद्र सरकार संशोधित कर सकती है।
  • प्रयोज्यता (Applicability): भारत में जो मध्यस्थता- दोनों घरेलू पक्षकारों के मामले में, एक व्यवसायिक विवाद में जिसमें एक पक्षकार विदेशी हो (अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता) और उन मामलों में जिनके मध्यस्थता अनुबंध में यह स्पष्ट हो कि प्रक्रिया विधेयक के अनुसार होगी, की जाएगी, उनपर यह विधेयक लागू होगा। अगर केंद्र या राज्य सरकार एक पक्षकार है तो यह विधेयक व्यवसायिक और अन्य अधिसूचित विवादों पर प्रयोज्य होगा।
  • मध्यस्थता प्रक्रिया (Mediation Process): बता दें कि इस विधेयक के तहत सभी मध्यस्थता प्रक्रियाएं गोपनीय होंगी और इन्हें 180 दिनों के अंदर खत्म करना जरूरी होगा (इस अवधि को पक्षकारों द्वारा 180 दिनों तक के लियए बढ़ाया भी जा सकता है)। न्यायालय से जुड़ी मध्यस्थता सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार आयोजित की जानी चाहिए।
  • मध्यस्थता हेतु मध्यस्थ (Mediators): इस विधेयक के अनुसार मध्यस्थों को समझौते के पक्षकारों द्वारा या मध्यस्थता की सेवा प्रदान करने वाले संस्थान द्वारा नियुक्त किया जाएगा। मध्यस्थों को पहले ही उन बातों का खुलासा करना होगा जो उनकी स्वतंत्रता पर संदेह पैदा कर सकती हों; ऐसे में पक्षकार चाहें तो उन्हें बदल सकते हैं।
  • भारत का मध्यस्थता परिषद (Mediation Council of India): केंद्र सरकार 'भारत का मध्यस्थता परिषद' स्थापित करेगी जिसमें एक अध्यक्ष, दो ऐसे पूर्णकालिक सदस्य जिन्हें एडीआर या मध्यस्थता में अनुभव हो, तीन पदेन सदस्य जिनमें कानून सचिव और व्यय सचिव शामिल हों और एक इंडस्ट्री बॉडी से अंशकालिक सदस्य होना चाहिए। इस परिषद के कार्यों की सूची में शामिल होगा मध्यस्थों का पंजीकरण और मध्यस्थता सेवा प्रदाताओं और मध्यस्थता संस्थानों को पहचानना।
  • मध्यस्थता से हुए समझौते की वैधता (Mediated Settlement Agreement): सामुदायिक मध्यस्थता के अलावा इस प्रक्रिया से निकलने वाले सभी फैसलों और समझौतों को उसी तरह से अंतिम, बाध्य और प्रवर्तनीय माना जाएगा जिस तरह अदालत के आदेशों को माना जाता है। धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, प्रतिरूपण और मध्यस्थता हेतु अनुपयुक्त विवाद- इन आधारों पर मध्यस्थता से लिए गए फैसलों को चुनौती दी जा सकती है।
  • क्या है सामुदायिक मध्यस्थता (Community Mediation): ऐसे विवाद जिनमें एक विशिष्ट क्षेत्र में रहने वाले लोगों की शांति और सामंजस्य को भंग करने की क्षमता हो, उन्हें सामुदायिक मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाया जाता है। बता दें कि यह प्रक्रिया तीन मध्यस्थों के पैनल द्वारा की जाती है; इस पैनल में उस समुदाय के लोग और रेजिडेंट वेल्फेयर एसोसिएशन्स के प्रतिनिधित्व शामिल हो सकते हैं।