Rahul Gandhi defamation case: राहुल गांधी की अपील पर सूरत की सत्र अदालत ने फैसला रखा सुरक्षित, 20 अप्रैल को सुनाएगी फैसला
नई दिल्ली: मानहानि मामले में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दी गई सजा के खिलाफ राहुल गांधी की अपील पर सूरत की सत्र अदालत ने गुरूवार को दोनो पक्षो की दलीलों के सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है.
राहुल गांधी की अपील पर Judge Robin Mogera के समक्ष हुई सुनवाई में सर्वप्रथम राहुल गांधी की ओर से Senior Advocate RS Cheema की कानूनी टीम ने पैरवी करते हुए दलीले पेश की. उसके पश्चात मामले में शिकायतकर्ता और भाजपा के पूर्णेश मोदी की ओर से पेश की गयी दलीलों को सुना.
दोनो पक्षों की दलीले सुनने के बाद Judge Robin Mogera ने राहुल गांधी की अपील पर फैसला सुरक्षित रखते हुए 20 अप्रैल को फैसले की तारीख तय की है.
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गुरुवार को सुनवाई के दौरान राहुल गांधी की ओर से कहा गया कि मानहानि कानून के मुताबिक केवल पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत दर्ज करा सकता है.
राहुल गांधी की दलीले
दलीले पेश करते हुए अधिवक्ता चीमा ने कहा कि कानून के मुताबिक यह होगा कि एक व्यक्ति, जिसे बदनाम किया गया है, पीड़ित व्यक्ति होगा. की धारा 499 (मानहानि) के स्पष्टीकरण 2 में कहा गया है कि यह मानहानि होगी यदि यह किसी कंपनी, व्यक्तियों के समूह आदि के खिलाफ है.
अधिवक्ता ने कहा कि अदालत को यह जांच करनी होगी कि क्या पूर्णेश मोदी के पास शिकायत दर्ज करने का अधिकार था या नही.
इस संबंध में चीमा ने कहा कि गांधी के भाषण का प्रासंगिक विश्लेषण करने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या स्पीकर की ओर से मोदी उपनाम वाले व्यक्तियों के समूह को बदनाम करने की कोई मंशा थी.
अधिवक्ता ने कहा कि "मेरा भाषण तब तक मानहानिकारक नहीं है जब तक कि संदर्भ से बाहर न किया जाए, इसे बनाने या इसे मानहानिकारक बनाने के लिए विस्तृत रूप से देखा जाए.
पीएम के खिलाफ बोलने का नतीजा
अधिवक्ता ने कहा कि शिकायतकर्ता की याचिका और कुछ नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गंभीर रूप से बोलने का नतीजा है,
अधिवक्ता ने कहा कि "मूल रूप से हमारे पीएम के बारे में मुखर रूप से आलोचना करने का साहस करने के लिए मुझ पर मुकदमा चलाया गया.
उन्होंने ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किए गए सबूतों पर भी आपत्ति जताई और कहा कि पूरे भाषण को रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया।
सुनवाई की ओर से राहुल गांधी के अधिवक्ता ने सूरत मजिस्ट्रेट अदालत के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि घटना कोलार में हुई तो उसे सूरत की अदालत कैसे सुन सकती थी.
बारीकी से जांच की जरूरत
अधिवक्ता ने कहा कि मानहानि कानून को लागू करने के लिए बहुत बारीकी से और बारीकी से जांच करने की जरूरत है।
अधिवक्ता ने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर कोई कहता है कि 'तुम पंजाबी झगड़ालू और गाली-गलौज करने वाले हो' तो क्या वे जाकर मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है.
अधिवक्ता ने यह भी कहा कि याचिका में कहा गया है कि मोदी सरनेम वाले 13 करोड़ लोगों को बदनाम किया गया जबकि गुजरातियों की कुल आबादी ही केवल 6 करोड़ है.