Quid Pro Quo: Electoral Bond के बदले कॉरपोरेट को कैसे मिला राजनीतिक लाभ? SIT जांच की मांग को लेकर Supreme Court में याचिका
Quid Pro Quo: सुप्रीम कोर्ट ने SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को देने के आदेश दिए. SBI ने जनकारी देने की जगह इसके लिए तीन महीनें का समय मांगा. ना-नुकुर और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से मिली फटकार के बाद SBI ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दी. चुनाव आयोग (Election Commission) ने इन जानकारियों को पब्लिक डोमेन में शेयर किया. चुनावी चंदे से जुड़ी सूचना बाहर आने के बाद जानकार, विशेषज्ञ और क्षेत्र के धुरंधर इलेक्टोरल बॉन्ड देने की अवधि और जांच एजेंसियों की कार्रवाई को एक-साथ जोड़कर देखने लगे, एक धारणा बनी कि कॉरपोरेट को इलेक्टोरल बॉन्ड्स (Electoral Bonds) के जरिए चुनावी चंदा देने से राजनैतिक लाभ मिला है. कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा कि राजनेताओं ने चंदा लिया और कॉरपोरेट को लाभ पहुंचाया यानि Quid Pro Quo. अब सुप्रीम कोर्ट से इन आशयों, धारणाओं या हाइपोथिसिस की जांच कराने की मांग हुई है. यह मांग कॉमन कॉज (Common Cause) और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (Centre For Public Interest Litigation) ने संयुक्त रूप से याचिका दायर कर की है. दोनों संस्थाओं ने न्यायालय से रिटायर्ड जज की अनुवाई में एक SIT टीम गठित कर जांच की मांग की है.
कॉरपोरेट- पॉलिटिकल सांठगांठ की हो SIT जांच
याचिका में बताया गया. कैसे कॉरपोरेट ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किया और राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें लाभ पहुंचाया गया है. बताने के लिए उन्होंने 22 कंपनियों का जिक्र किया गया है जिन्हें सरकारी योजनाओं, टैक्स का लाभ मिला. साथ ही इन कंपनियों ने कैसे इनकम टैक्स रेड के बाद चुनावी चंदा दिया है. चंदा देने के बाद इन कंपनियों के खिलाफ हो रही जांच या कार्रवाई रोक दी गई.
याचिका में शेल कंपनियों का जिक्र भी किया गया है. शेल कंपनियों ने भी कई करोड़ो के चंदे दिये हैं.
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इन कंपनियों के जरिए काले धन का पैसा राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है. ये प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 से जुड़ा मामला है.