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पुलिस ने अपने ही अपराध को छिपाने के लिए मामला बनाया हो-Supreme Court

असम में 34 साल पूर्व हुई हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए लोगो को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर करते हुए पुलिस के खिलाफ कई गंभीर टिप्पणीयां की है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : March 30, 2023 10:55 AM IST

नई दिल्ली: असम के डिब्रूगढ़ में 34 साल पूर्व हुई हत्या के एक मामले में ट्रायल कोर्ट के बाद हाईकोर्ट द्वारा दोषी घोषित किए गए चार दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है.

Justice BR Gavai, Justice Vikram Nath और Justice Sanjay Karol की बेंच ने दोषियों को बरी करते हुए पुलिस के खिलाफ कई गंभीर टिप्पणीया की है.

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सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्य पीठ हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए और आजीवन उम्रकैद की सजा पाए PULEN PHUKAN व 3 अन्य की अपील पर सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया है. चारो दोषियों ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के 2015 के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा की पुष्टि की थी.

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पुलिस की साजिश

पीठ ने यहां तक ​​कहा कि हो सकता है कि पुलिस ने मृतक को गिरफ्तार करने की कोशिश करते समय गलती से मार दिया होगा और उसी को कवर करने के लिए, आरोपी के खिलाफ मामला गढ़ा होगा. क्योकि मृतक और आरोपी के बीच पूर्व से दुश्मनी होने के बारे में पुलिस को पता था.

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पीठ ने कहा कि इस मामले में ये अंतिम समय तक स्पष्ट नहीं किया जा सका है कि आखिर इस पुरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस की मौजूदगी क्यों थी. पीठ ने कहा "यहां तक कि मामले की एफआईआर दर्ज कराने वाले को भी पेश नहीं किया गया और न ही हस्ताक्षर साबित हुए. यह बहुत संभव है कि यह पुलिस की पूरी साजिश थी.

पीठ ने कहा पुलिस ने मृतक को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया में हत्या को अंजाम दिया और उसके बाद, दोनों पक्षों के बीच दुश्मनी को जानते हुए, आरोपी के खिलाफ झूठा मामला कायम किया."

पीठ ने हैरानी जताई की आखिर जिस समय हत्या होने की बात कही जा रही थी उस समय भी पुलिस की मौजूदगी क्यों थी.

पीठ ने कहा कि "जाहिर तौर पर इस वजह से कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है, जिससे पूरी घटना के दौरान चबुआ पुलिस थाने के पुलिसकर्मियों की मौजूदगी का स्पष्टीकरण दिया जा सके."

क्या है मामला

13 जून 1989 को चाबुआ पुलिस थाना क्षेत्र में प्रदीप फुकन की हत्या कर दी गई थी. मृतक की भाभी की ओर से इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई जाने के आधार पर पुलिस ने 11 आरोपियो को गिरफतार किया.

मृतक की भाभी की शिकायत के अनुसार घटना के समय गांव के कुल तेरह निवासी उसके घर आए, और उसके भाई के सिर पर गंभीर चोट पहुंचाई- धारदार हथियार से वार कर उसकी हत्या कर दी.

3 मई, 1991 को पुलिस ने आठ आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई और तीन को बाद में गिरफतार किया गया. ट्रायल कोर्ट ने ट्रायल के बादद सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सजा को बरकरार रखा. 11 में से 4 दोषियों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने मुखबिर और तीन चश्मदीदों द्वारा घटना के समय दी गई गवाही को रखा जिसमें स्पष्ट रूप से कहा था कि पुलिस कर्मी आरोपी-अपीलकर्ताओं के साथ मृतक के घर गए थे और वे पूरी घटना के दौरान मौजूद थे, जिसमें हत्या भी शामिल थी.

पुलिस की मौजूदगी पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्य पीठ ने हत्या के समय पुलिस की मौजूदगी पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि अगर अपराध के समय पुलिस कर्मी मौजूद थे, तो उन्हें तुरंत कार्रवाई करने के लिए आपराधिक मशीनरी को गति देने के लिए पहले आरोपी को मौके से ही पकड़ने की बजाय उन्हें रास्ते से हटाने की अनुमति देनी चाहिए थी.

अदालत ने कहा, "अभियोजन पक्ष का पूरा बयान गवाह है कि आरोपी के साथ पुलिस कर्मी मृतक के घर के बाहर खड़े थे, जो अभियोजन पक्ष की कहानी की उत्पत्ति पर गंभीर संदेह पैदा करता है।"

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विभिन्न चश्मदीदों के अलग अलग बयान और मामले में एफआईआर दर्ज कराने वाली भाभी का सामने नही आना मामले को संदिग्ध बनाता है.

बहस सुनने के बाद पीठ ने चारो दोषियो को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने का फैसला सुनाया है.