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बिना आपराधिक मामला दर्ज हुए पुलिस ने किया गिरफ्तार, High Court ने जज को भी बनाया पक्षकार

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष दायर याचिका में दावा किया गया है कि करसोग अदालत के जज ने याचिकाकर्ता के खिलाफ बिना मुकदमें के ही हिरासत में रखने का आदेश दिया है. याचिका में मौलिक अधिकारों के हनन के लिए 1 करोड़ रूपए का मुआवजा दिलाने की मांग की है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : March 22, 2023 8:24 AM IST

नई दिल्ली: Himachal Pradesh High Court ने बिना आपराधिक मामला दर्ज हुए पुलिस द्वारा गिरफतार किए गए व्यक्ति को जेल भेजने के मामले को गंभीरता से लिया है. इस मामले में High Court ने जेल भेजने वाले जज को भी पक्षकार बनाते हुए हिमाचल प्रदेश के राज्य गृह सचिव और पुलिस के आला अधिकारियो को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

Acting Chief Justice सबीना और जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने बुधी सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिए है.

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पुलिस की गफलत से मामले में समान नाम के दूसरे व्यक्ति को ना केवल अदालत में पेश किया गया, बल्कि अदालत ने भी उसे आरोपी मानते हुए तीन दिन न्यायिक हिरासत में भेजने के आदेश दे दिए.

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क्या है मामला

मई 2022 में हिमाचल प्रदेश के करसोग पंजाब नेशनल बैंक ने बुधी सिंह पुत्र कपुरू के खिलाफ चेक बाउंस की शिकायत दर्ज कराई थी. बैंक की शिकायत पर करसोग के मजिस्ट्रेट ने बुधी सिंह पुत्र कपुरू के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था.

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मामले की सुनवाई 20 जून 2022 को निर्धारित होने की स्थिती में 18 जून को करसोग पुलिस ने याचिकाकर्ता को गैर जमानती वारंट की तामील कराते हुए 20 जून को कोर्ट में पेश किया.

याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष निर्दोष होने का दावा करते हुए बयान दिया कि उसे गलतफहमी के चलते पुलिस पकड़कर लाई है और उसके खिलाफ किसी भी अदालत में कोई मामला दर्ज नहीं है.

याचिकाकर्ता के अनुसार इस मामले में ना पुलिस ने और ना ही संबंधित अदालत के जज ने ही उसके बयानों पर गौर किया. जिसके चलते अदालत ने उसे 3 दिन के न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

एक करोड़ का मुआवजा

हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि दूसरे ही दिन 21 जून 2022 को करसोग अदालत के समक्ष उसके अधिवक्ता ने बताया कि मामला किसी और बुधी सिंह पुत्र कपुरू के खिलाफ दर्ज है और यह सब याचिकाकर्ता और आरोपी का नाम और उनके पिता का नाम एक समान होने के कारण हुआ है.

अधिवक्ता ने कहा कि जानकारी देने के बावजूद ना तो अदालत ने और ना ही पुलिस ने उसकी बात सुनी.

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा कि अवैध हिरासत के जरिए ना केवल पुलिस ने बल्कि अदालत ने भी उसके मौलिक अधिकारों के हनन के लिए 1 करोड़ रूपए का मुआवजा दिलाने की मांग की है.