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PM Degree Case: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री को लेकर दायर पर जल्द सुनवाई से Delhi High Court ने किया साफ इनकार

PM Narendra Modi Degree Case Delhi HC Refuses Early Hearing

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री हेतु दायर जनहट याचिका की शीघ्र सुनवाई से दिल्ली उच्च न्यायालय ने साफ इनकार कर दिया है। मामला क्या था और अब इसमें सुनवाई कब की जाएगी, जानिए सबकुछ

Written By Ananya Srivastava | Published : July 11, 2023 10:40 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission) के एक आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) की याचिका पर पहले सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

इस आदेश में विश्वविद्यालय को 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था। उसी वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने वहां से स्नातक किया था।

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दिल्ली उच्च न्यायालय इस दिन करेगा सुनवाई

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने मामले में जल्द सुनवाई के एक आवेदन पर डीयू को नोटिस जारी किया और इसे 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जिस दिन मुख्य याचिका पर सुनवाई पहले से तय है।

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उच्च न्यायालय ने आयोग के 21 दिसंबर, 2016 के आदेश पर 23 जनवरी, 2017 को रोक लगा दी थी। केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को डीयू की चुनौती के अलावा अदालत अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रही थी जिनमें कुछ परीक्षा परिणामों की जानकारी का खुलासा करने से संबंधित समान कानूनी मुद्दे उठाये गये थे।

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सूचना के अधिकार (Right to Information) कानून के तहत कार्यकर्ता नीरज की याचिका पर सीआईसी (CIC) का आदेश आया था। आरटीआई के तहत 1978 में डीयू में हुई बीए की परीक्षा में शामिल हुए छात्रों का ब्योरा मांगा गया था।

नीरज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने सुनवाई के दौरान कहा कि मामला काफी समय से लंबित है, इसलिए जल्द सुनवाई वांछनीय है। न्यायाधीश ने कहा, मामला अक्टूबर में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। मेरी बात लिख लीजिए, यदि मैं रोस्टर में बना रहा तो तब तक मामले का निस्तारण हो जाएगा। कोई कारण नजर नहीं आता कि ऐसा (सुनवाई की तारीफ बदलना) क्यों किया जाए।’’

CIC के आदेश को DU ने दी चुनौती, कही ये बात

सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए डीयू ने दलील दी कि आरटीआई प्राधिकार का आदेश मनमाना’ और कानून के लिहाज से अविचारणीय’ है क्योंकि मांगी गयी जानकारी तीसरे पक्ष की निजी जानकारी’ है।

डीयू ने अपनी याचिका में कहा था कि सीआईसी के लिए याचिकाकर्ता (डीयू) को वह सूचना देने का निर्देश जारी करना पूरी तरह अवैध है जो उसके पास विश्वसनीयता की जिम्मेदारी के नाते उपलब्ध है। उसने कहा कि इसके अलावा सूचना के लिए कोई अत्यावश्यकता या व्यापक जनहित की भी कोई बात नहीं है।

डीयू ने पहले अदालत से कहा था कि सीआईसी के आदेश के याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए दूरगामी प्रतिकूल परिणाम होंगे जो विश्वसनीयता की जिम्मेदारी के साथ करोड़ों छात्रों की डिग्री रखते हैं।

उसने दावा किया कि आरटीआई कानून को मजाक’ बना दिया गया है जहां प्रधानमंत्री मोदी समेत 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों का रिकॉर्ड मांगा गया है। सीआईसी ने अपने आदेश में डीयू से कहा था कि रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी जाए। उसने केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की इस दलील को खारिज कर दिया था कि यह तीसरे पक्ष की निजी जानकारी है।