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महिला के नहाने के दौरान सार्वजनिक बाथरूम में झांकना IPC के तहत अपराध है, भले ही बाथरूम में सिर्फ पर्दा लगा हो: Delhi HC

Delhi High Court ने स्पष्ट किया है कि धार्मिक स्थलों पर पवित्र स्नान के लिए खुले स्थान पर नहाने वाली महिलाओं की तस्वीरें या वीडियो लेना और प्रसारित करना भी उनकी निजता पर हमला करने जैसा होगा. इसके लिए IPC की धारा 354 सी में स्पष्ट प्रावधान किया गया है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : April 7, 2023 10:48 AM IST

नई दिल्ली: Delhi High Court ने एक महत्वपूर्ण फैसले में भारतीय दंड संहिता IPC 354  को लेकर निजी कृत्य को और अधिक तरीके से स्पष्ट करते हुए कहा है कि बाथरूम में नहाना एक 'निजी कृत्य' है, भले ही बाथरूम सार्वजनिक बाथरूम हो और उसमें दरवाजा नहीं बल्कि केवल एक पर्दा लगा हो.

Justice Swarana Kanta Sharma  ने अपने फैसले में कहा कि बंद बाथरूम में नहाने वाली महिला को उम्मीद होती है कि उसकी निजता पर हमला नहीं होगा और उसे देखा नहीं जाएगा.

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एकलपीठ ने कहा कि इसलिए अगर कोई महिला के स्नान करते समय उसके बाथरूम में झांकता है, तो यह भारतीय दंड संहिता IPC 354 C, के तहत criminality of voyeuristic behaviour की आपराधिकता की श्रेणी में आएगा.

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पीठ ने कहा बाथरूम के अंदर झाँकने वाले अपराधी के कृत्य को निश्चित रूप से उसकी निजता पर आक्रमण माना जाएगा. पीठ ने आगे कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की यौन अखंडता (sexual integrity) का सम्मान किया जाना चाहिए और उसी के किसी भी हाल में उल्लंघन से सख्ती से निपटा जाना चाहिए.

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निचली अदालत ने सुनाई 1 साल की सजा

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के पश्चिम विहार निवासी एक ऐसे दोषी की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर आरोप था कि पीड़ित नाबालिग लड़की जब भी नहाने जाती थी तब आरोपी बाथरूम के बाहर खड़ा होकर अंदर झाकता था और उसे यौन इरादे से देखता था.

शिकायत में यह भी आरोप था कि आरोपी सोनू नाबालिग लड़की के खिलाफ अभद्र टिप्पणी और इशारे करता था.

निचली अदालत ने ट्रायल के बाद मामले में सोनू @ बिल्ला को IPC की धारा 354C और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 की धारा 12 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया और उसे एक साल के सश्रम कारावास और 20,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई.

सार्वजनिक स्थान पर स्नान

मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि पीड़िता सार्वजनिक स्थान पर अपनी झुग्गी के बाहर स्थित बाथरूम में स्नान कर रही थी, इसलिए इसे पवित्र नदियों, जल पार्कों, स्विमिंग पूल या झीलों में स्नान करने के समान माना जाना चाहिए.

अधिवक्ता ने यह भी कहा कि झुग्गी के बाहर स्थापित किए गए इस बाथरूम में दरवाजा नही होकर केवल एक पर्दा लगा हुआ था और दीवारे भी अस्थायी बनाई हुई थी.

अधिवक्ता ने तर्क देते हुए कहा कि धार्मिक स्थलों पर पवित्र स्नान करने के दौरान भी कोई दीवार या पर्दा नही होता इसलिए इस मामले को भी एक निजी कार्य की बजाए सार्वजनिक कार्य माना जाना चाहिए.

अधिवक्ता ने कहा कि वर्तमान मामले में पीड़िता द्वारा स्नान करने का कार्य, 'निजी कार्य' होने के बजाय 'सार्वजनिक कार्य' बन गया है. अधिवक्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि इस मामले में निचली अदालत द्वारा दी गई सजा बेहद सख्त है और उसे रद्द किया जाना चाहिए.

हाईकोर्ट ने किया खारिज

निचली अदालत के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दी गई दलीलों को खारिज करते हुए जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि इस मामले में पीड़िता जिस बाथरूम में नहा रही थी हालांकि एक खुले क्षेत्र में स्थित है लेकिन यह खुला सार्वजनिक स्थान नहीं था क्योंकि इसमें दीवारें थीं और प्रवेश द्वार एक पर्दे से ढका हुआ था.

अदालत ने कहा कि इस मामले में मामले में पीड़िता द्वारा स्नान करने का कार्य, 'निजी कार्य' होने के बजाय 'सार्वजनिक कार्य' बताने का तर्क पूरी तरह से आधारहीन है.

अदातल ने कहा कि वर्तमान मामले की तथ्यात्मक स्थिति में परीक्षण किया जाता है, तो यह IPC की धारा 354C की परिभाषा द्वारा स्पष्ट किये गए 'निजी कार्य को परिभाषित करता है.

फोटो-वीडियो लेना भी निजता पर हमला

अदालत ने बचाव पक्ष द्वारा धार्मिक स्थलों पर स्थान के दिए गए तर्क को भी खारिज करते हुए कहा कि धार्मिक स्थलों पर पवित्र स्नान करने की तुलना एक बंद बाथरूम से नहीं की जा सकती है जहां एक महिला स्नान कर रही है.

अदालत ने कहा कि हालांकि, सार्वजनिक खुले स्थान पर नहाने के मामले में भी, 'उचित अपेक्षा' की जाएगी कि ऐसी महिलाओं की तस्वीरें या वीडियो न ली जाएं और न ही प्रसारित की जाएं.

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलो में भी, यह उसकी निजता पर हमला करने जैसा होगा. किसी भी व्यक्ति को, उस स्थिति में भी किसी महिला की तस्वीरें वीडियो आदि लेने का अधिकार नहीं है, जैसा कि आईपीसी की धारा 354C में स्पष्ट किया गया है.

POCSO में सजा नही लेकिन...

बहस सुनने के बाद अदालत ने इस मामले में निचली अदालत द्वारा आईपीसी की धारा 354 सी में दी गई सजा को रद्द करने से इंकार कर दिया.

अदालत के समक्ष अभियोजन पक्ष पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम साबित करने में नाकाम रहा जिस पर उसे POCSO के तहत दोषसिद्धि से मुक्त कर दिया गया.