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देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता-जस्टिस नागरत्ना

जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने गवई के फैसले असहमति जताते हुए कहा कि कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंख्ला के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, अधिसूचना के जरिए नहीं. उन्होने कहा कि देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता.

Written By Nizam Kantaliya | Published : January 2, 2023 6:21 AM IST

नई दिल्ली: केन्द्र सरकार के नोटबंदी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ में बहुमत से अलग राय रखते हुए जस्टिस बी वी नागरत्ना ने फैसले से असहमति जताई है.

जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि नोटबंदी अपने मुख्य मुद्दे से चूक गया. आरबीआई को विमुद्रीकरण प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए न कि केंद्र को. जैसा कि 2016 में इसे उलट दिया गया था. विमुद्रीकरण का निर्णय कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण था.

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संसद को अलग नहीं रखा जा सकता

सुप्रीम कोर्ट की पीठ के 4 सदस्यों ने नोटबंदी को लेकर केंद्र के कदम को सही ठहराया. जस्टिस गवई ने जहां फैसले में कहा कि केंद्र के फैसले में खामी नहीं हो सकती क्योंकि रिज़र्व बैंक और सरकार के बीच इस मुद्दे पर पहले विचार-विमर्श हुआ था.

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दूसरी तरफ जस्टिस बी वी नागरत्ना ने गवई के फैसले असहमति जताते हुए कहा कि कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंख्ला के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, अधिसूचना के जरिए नहीं. उन्होने कहा कि देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता.

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रिजर्व बैंक ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता

नागरिको के लिए कठिन

जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी की प्रक्रिया को अवैध बताते हुए कहा कि नोटबंदी का फैसला छह साल पहले किया गया था, इसे अब पलटा नहीं जा सकता है. चूंकि नोटबंदी के कारण देश के नागरिकों के लिए बहुत कठिन परिस्थितियां उत्पन हुई थीं. उन्होने कहा कि इसे संसद में एक कानून पारित करने के बाद ही किया जाना चाहिए था.

जस्टिस नागरत्ना ने इस बात का समर्थन किया नोटबंदी सुविचारित थी और इसका उद्देश्य काले धन, आतंकी फंडिंग और ऐसी अन्य भ्रष्ट प्रथाओं का मुकाबला करना था.

जस्टिस गवई के फैसले से असहमति

जस्टिस गवई द्वारा लिखे गए फैसले को जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन ने सहमति दी है. लेकिन जस्टिस बी वी नागरत्ना ने असहमति जताई है.

पीठ के तीसरे सदस्य जस्टिसबी वी नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र सरकार की शक्तियों के बिंदु पर जस्टिस गवई के फैसले से अलग राय जाहिर की है.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह रिकॉर्ड पर लाया गया है कि 98% बैंक नोटों का आदान-प्रदान किया गया था. इससे पता चलता है कि नोटबंदी का उपाय स्वयं प्रभावी नहीं था जैसा कि होने की मांग की गई थी. लेकिन अदालत इस तरह के विचार के आधार पर अपने फैसले को आधार नहीं बना सकती है.

कानून के माध्यम से

जस्टिस नागरत्ना के अनुसार 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी है. लेकिन इस पर यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती है.

जस्टिस नागरत्ना ने अपनी असहमति में कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों की पूरी श्रृंखला का विमुद्रीकरण एक कानून के माध्यम से किया जाना था, न कि गजट अधिसूचना के माध्यम से.