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बालिग लड़की को पसंद का साथी चुनने आधिकार, इसमें माता-पिता की चिंता रूकावट नहीं बन सकती: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता का प्रेम और चिंता बालिग बच्चे के साथी चुनने के अधिकार को सीमित नहीं कर सकती है. अदालत ने कहा, माता-पिता का प्रेम या चिंता एक बालिग के विवाह के लिए साथी चुनने के अधिकार को बाधित नहीं कर सकती है.

Written By Satyam Kumar | Published : June 12, 2024 11:11 AM IST

Adult Girl To Choose Spouse: आम धारणा है कि भारतीय परिवेश में लड़की के बालिग होने पर माता-पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगती है. पीछे की वजह आर्थिक-समाजिक या भले ही कुछ और हो. माता-पिता एक सुयोग्य वर की खोज में जुट जाते हैं. योग्यता मापन में सरकारी नौकरी वाले कैंडिडेट को प्राइवेट नौकरी वाले के ऊपर हमेशा तवज्जों दी जाती है, भले ही बालिग लड़के या लड़की की मर्जी जो भी हो. हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने इस विषय पर अहम टिप्पणी की है. केरल हाईकोर्ट ने कहा, बालिग लड़की को अपने पसंद का साथी चुनने का अधिकार है. माता-पिता की चिंता या प्रेम उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकते हैं. इसका आशय है कि माता-पिता की इच्छा बालिग बच्चे को अपने पसंद की साथी चुनने में रूकावट नहीं डाल सकती है. केरल हाईकोर्ट ने ये बातें बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका पर सुनवाई करते हुए कही. मामले में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि जिस महिला के साथ वह रिलेशनशिप में है, वह अलग धर्म की है. उसके माता-पिता को जब ये बात पता चली तो उन्होंने अपनी लड़की को बंद करके रखा है.

बालिग को पसंद का साथी चुनने का अधिकार: HC

केरल हाईकोर्ट में, जस्टिस राजा विजयाराघवन और जस्टिस पीएम मनोज ने बालिग के शादी के अधिकार को स्पष्ट किया. सुनवाई के दौरान अदालत ने शफीन जहां बनाम अशोकन के.एम. (हादिया मामले) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अवैध बंदी से मुक्ति सुनिश्चित करने की महत्वपूर्णता पर जोर दिया.

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बेंच ने कहा,

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"माता-पिता का प्रेम या चिंता एक वयस्क के विवाह के लिए साथी चुनने के अधिकार को कम नहीं कर सकती है,"
अदालत ने आगे कहा, जब तक किसी व्यक्ति की पसंद किसी कानून का उल्लंघन नहीं करती, तब तक उनके पसंद की सम्मान और सुरक्षा की जानी चाहिए. भारतीय संविधान भी इसी बात पर जोड़ देती है.
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बेंच ने ये भी कहा,

"ऐसे मामलों में अदालत की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. अदालत को बंदी को हाजिर कराकर उसकी पसंद का पता लगाना चाहिए. साथ ही अदालत ये सुनिश्चित करें कि संबंधित व्यक्ति को अवैध बंदी से मुक्त किया जाए."

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता के अनुसार, वह एक प्रोजेक्ट इंजीनियर के रूप में काम कर रही एक महिला (27 वर्ष) के साथ घनिष्ठ संबंध में था और महिला के पिता ने धार्मिक वजहों के चलते इस संबंध का विरोध किया और उसे लड़की को बंदी बना लिया. व्यक्ति ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के माध्यम से उसे समाने लाने की मांग की थी.

केरल हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए महिला को याचिकाकर्ता से मिलने की इजाजत दी.