अपनी इच्छा के बिना नशा करने के बाद किया गया कार्य अपराध नहीं माना जाएगा, जानिए क्यों
नई दिल्ली: जब कोई व्यक्ति अपने होशो-हवास में नहीं होता है और यह भी नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है, तो उसे उस कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि यह साबित नहीं किया जा सकता की उसने आपराधिक नियत के तहत कार्य किया. आपराधिक कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति को उसके आपराधिक कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए यह साबित करना ज़रूरी है कि उसके पास आपराधिक नियत थी.
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) 1860 की धारा 85 और धारा 86 में नशे के कारण किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कार्यों से संबंधित प्रावधान हैं. जानते हैं की वे प्रावधान क्या हैं.
IPC की धारा 85
IPC की धारा 85 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति द्वारा कोई आपराधिक कार्य करता है और उस कार्य को करते वक़्त वह नशे में लिप्त हो अपना होशो-हवास खो दे और उसे सही और गलत की समझ न हो तब वह व्यक्ति उस कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होगा .
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लेकिन एक बात याद रखने वाली यह है कि धारा 85 के तहत अंतर्गत आने के लिए व्यक्ति को उसकी जानकारी के बिना या जबरन नशा किया हुआ होना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से नशा करता है, तो उसे उसके कार्यो के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा.
यह धारा उन अपराधों को संदर्भित करती है जिसमें व्यक्ति अनैच्छिक रूप से नशे में होता है, जिसका अर्थ है कि नशीला पदार्थ उसकी अपनी इच्छा के विरुद्ध दिया जाता है या उसे पता ही नहीं होता की उसे नशीला पदार्थ दिया गया है और उसके परिणाम स्वरुप कोई आपराधिक कार्य करता है.
नशे में धुत व्यक्ति के कार्य को IPC की धारा 85 के तहत आपराधिक दायित्व से छूट दी गई है, जिसका अर्थ है कि आरोपी पर उसके द्वारा किए गए अपराध का आरोप नहीं लगाया गया है क्यूं कि उसका यह कार्य आपराधिक नियत की अनुपस्थिति को दर्शाता है.
धारा 85 का बचाव पाने के लिए इन महत्वपूर्ण बातों की आवश्यकता होती है
● अपराध करते समय अभियुक्त नशे में था
● नशा उसकी जानकारी के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध किया था
● नशे के वजह से उसे नहीं पता था कि वह कार्य गलत है
● किया गया कार्य कानून के विपरीत था
IPC की धारा 86
आईपीसी की धारा 85 के अलग, धारा 86 में कहा गया है कि यदि व्यक्ति अपनी मर्जी से नशा करता है और फिर वह नशे में रहते हुए अपराध करता है तो वह अपने कार्य के लिए उत्तरदायी होगा और ऐसा माना जाएगा कि वह बिल्कुल भी नशे में नहीं था.
हालांकि इस धारा के अनुसार, नशे के बाद भी यदि कोई व्यक्ति यह समझने में सक्षम है कि उसने क्या किया है या उसने जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाई है या वह अपने पूरे होश में है, तो फिर उसे उसके आपराधिक कार्य के लिए दोषी ठहराया जाएगा और वह व्यक्ति IPC की धारा 85 के तहत का बचाव की बात नहीं कर सकता.
अनैच्छिक नशा: कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय
वेंकप्पा कन्नप्पा चौधरी बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में, अदालत ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि कोई व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से शराब का सेवन करके, नशे की हालत में कोई अपराध करता है तो वह व्यक्ति कोर्ट में आकर यह नहीं कह सकता है कि उसने शराब का सेवन किया था और इसलिए, उसे IPC की धारा 85 का लाभ मिलना चाहिए.
बाबू सदाशिव जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में अदालत ने आरोपी को अपनी पत्नी की हत्या का दोषी ठहराया, जहां आरोपी ने नशा करने का बचाव किया था अदालत ने कहा कि आरोपी नशे में था, लेकिन वह अपना होशो-हवास नहीं खोया था और उसे पता था कि वह क्या कर रहा था, क्योंकि आरोपी ने अपनी पत्नी को जलाने के बाद, उसे एहसास हुआ कि उसने क्या किया है और फिर वह आग बुझाने की कोशिश करता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इससे पता चलता है कि वह उस समय जानता था कि उसने जो किया वह गलत था और यह जानते हुए भी उसने जानबूझकर वह अपराध किया.