दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रसव पूर्व शिशु की लैंगिक पहचान उजागर करने के मामले में डॉक्टर के खिलाफ रद्द की FIR
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में गर्भस्थ शिशु की लैंगिक पहचान का खुलासा करने के आरोप में एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द करने का फैसला सुनाया है. फैसले में अदालत ने यह साफ किया कि चिकित्सक के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है जो यह साबित करे कि उसने प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीकों (Pre- Natal Diagnostic Techniques) का उल्लंघन किया है. बता दें कि मामले में चिकित्सक ने अपने खिलाफ आरोपों को निराधार बताते हुए FIR रद्द करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. बताते चलें कि गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाने के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीक का उपयोग करना भारतीय कानून के तहत प्रतिबंधित है. यह गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी एवं पीएनडीटी) अधिनियम के अंतर्गत आता है, जिसका उद्देश्य लिंग आधारित भेदभाव को रोकना है.
लिंग पता लगाने के आरोपों से डॉक्टर को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस चंद्रधारी सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए डॉक्टर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का आदेश सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया गया है कि उसने प्रसव पूर्व निदान तकनीकों का उपयोग करते हुए पीसी और पीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन किया है. अदालत ने कहा कि उसे लगता है कि प्रथम दृष्टया चिकित्सक के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है.
चिकित्सक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल नहीं किया है. यह दर्शाता है कि चिकित्सक के खिलाफ कोई ठोस मामला नहीं है.
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हालांकि, अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अल्ट्रासाउंड चिकित्सक ने किया था और भ्रूण के लिंग का कथित खुलासा सह-आरोपी ने किया था. इस दावे के बावजूद, अदालत ने यह माना कि इस मामले में कोई ठोस आधार नहीं है.
क्या है मामला?
अगस्त 2020 में हरि नगर में एक अल्ट्रासाउंड सेंटर पर छापेमारी के बाद डॉक्टर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. महिला डॉक्टर पर आरोप लगाया गया कि उसने ने एक 'फर्जी मरीज' का अल्ट्रासाउंड किया और भ्रूण के लिंग का खुलासा किया है.
हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं है.