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Supreme Court में नवनियुक्त जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह हैं 19 वें मुस्लिम जज

सुप्रीम कोर्ट में कभी धर्म के अनुसार किसी जज की नियुक्ति नहीं हुई है, लेकिन ये भी एक हकीकत है कि सुप्रीम कोर्ट में जब भी कोई ऐसा मामला आया है जिसमें मुस्लिम जज की जरूरत पड़ी है. उस बेंच में एक मुस्लिम जज जरूर मौजूद रहें. इलाहाबाद हाईकोर्ट से सीधे देश की सर्वोच्च अदालत में जज नियुक्त होने वाले जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह सुप्रीम कोर्ट के 19वें मुस्लिम जज हैं.

Written By Nizam Kantaliya | Published : February 6, 2023 8:09 AM IST

नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में नवनियुक्त 5 जजों के शपथ ग्रहण के साथ ही कार्यरत जजों की संख्या 32 हो गयी है. नवनियुक्त जजों में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की नियुक्ति के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में फिर से एक मुस्लिम जज की मौजूदगी हुई है.

सुप्रीम कोर्ट में कभी धर्म के अनुसार किसी जज की नियुक्ति नहीं हुई है, लेकिन ये भी एक हकीकत है कि सुप्रीम कोर्ट में जब भी कोई ऐसा मामला आया है जिसमें मुस्लिम जज की जरूरत पड़ी है. उस बेंच में एक मुस्लिम जज जरूर मौजूद रहें.

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स्थापना के बाद से ही अघोषित तरीके से ही सही लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत में मुस्लिम जज के लिए कम से कम एक सीट आरक्षित रखी गई. देश की सर्वोच्च अदालत में कभी कभी इनकी संख्या 2 से लेकर 4 तक भी हुई है.

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शपथ ग्रहण के साथ ही जस्टिस अमानुल्लाह वर्तमान में  सुप्रीम कोर्ट में अघोषित रूप से मुस्लिम जज होने का प्रतिनिधित्व करेंगे.आजादी के बाद से वे सर्वोच्च अदालत में नियुक्त होने वाले 19 वें मुस्लिम जज है.

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सीजेआई की पसंद

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की नियुक्ति का मुख्य आधार सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ को माना जाता है. कहा जाता है कि सीजेआई जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यरत रहे, उस दौरान वे जस्टिस अमानुल्लाह की कार्यक्षमता से बेहद प्रभावित हुए थे.

मुस्लिम जज के रूप में गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस अकील कुरैशी, राजस्थान हाईकोर्ट के जज जस्टिस मोहम्मद रफीक, बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद और जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस अली मोहम्मद मागरे को भी कभी मुख्य दावेदार माना गया था.लेकिन कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर की सेवानिवृति का इंतजार किया.

केन्द्र भी जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस अली मोहम्मद मागरे को सुप्रीम कोर्ट लाने की पक्षकार थी. सूत्र बताते है कि जस्टिस मागरे की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति नहीं होने के बाद से ही केंद्र और कॉलेजियम के बीच के रिश्ते तल्ख होते गए.

जस्टिस एस अब्दुल नजीर 4 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए. 1983 में कर्नाटक में वकालत का सफर शुरू करने वाले जस्टिस नजीर 12 मई 2003 में कर्नाटक हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए थे. 17 फरवरी 2017 को उन्हे सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था.

जस्टिस एस अब्दुल नजीर सुप्रीम कोर्ट में धर्म से जुड़े मामलों में सबसे ज्यादा मांग में रहने वाले जज माने जाते रहे हैं. अयोध्या भूमि विवाद और ट्रिपल तलाक के ऐतिहासिक फैसले में वे शामिल रहे. अगस्त 2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली 9 सदस्य पीठ का भी वे हिस्सा रहे थे.

19 वें मुस्लिम जज

जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह देश की सर्वोच्च अदालत में नियुक्त होने वाले 19 वें मुस्लिम जज है. बिहार के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार में जन्मे जस्टिस अमानुल्लाह का जन्म 11 मई 1963 को हुआ था. उनके पिता स्वर्गीय नेहलुद्दीन एक दिग्गज राजनीतिक एवं सामाजिक व्यक्ति रहे है. अपनी स्कूली शिक्षा और विज्ञान में स्नातक (रसायन विज्ञान ऑनर्स) करने के बाद पटना लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री ली.

एलएलबी करने के बाद 27 सितंबर 1991 को बिहार राज्य बार काउंसिल के साथ एक वकील के रूप में रजिस्टर्ड कराया. एक वकील के रूप में वे पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे. वे मार्च 2006 - अगस्त 2010 तक बिहार सरकार के स्थायी वकील भी रहे.

2002 में बिहार स्टेट बार काउंसिल और 2006 में झारखंड स्टेट बार काउंसिल के चुनाव के लिए सहायक रिटर्निंग ऑफिसर भी रहे. एक वकील के रूप में, उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में भारतीय प्रशासनिक सेवा परिवीक्षाधीनों को संबोधित किया. उन्होंने पटना हाईकोर्ट की किशोर न्याय समिति के अध्यक्ष, बिहार न्यायिक अकादमी में बोर्ड सदस्य, पटना हाई कोर्ट लीगल कमेटी के भी सदस्य रहें.

20 जून 2011 को उन्हे पटना हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया. करीब 10 बादल उन्हे 10 अक्टूबर 2021 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया गया जहाँ उन्हें 08 नवंबर 2021 को आंध्र प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में उन्हे 20 जून 2022 को फिर से पटना हाईकोर्ट में तबादला किया. जहां वे 11 अक्टूबर 2022 को बिहार न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष भी नियुक्त किए गए. वरिष्ठता के चलते 29 नवंबर 2022 को उन्हे बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

13 दिसंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इनके नाम की सिफारिश केंद्र को भेजी.

सर्वोच्च अदालत में मुस्लिम जजों का सफर

26 जनवरी 1950 को संविधान की स्थापना के साथ ही देश के नए सुप्रीम कोर्ट का गठन की घोषणा की गई थी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में 6 जज नियुक्त किए गए थे. इन प्रथम 6 जजों में जस्टिस सर सैयद फजल अली प्रथम मुस्लिम जज के रूप में मौजूद रहें. जस्टिस अली 26 जनवरी 1950 से 18 सितंबर 1951 तक सुप्रीम कोर्ट में जज रहें. सुप्रीम कोर्ट में 18 मुस्लिम जजों के कार्यकाल का सफर इस तरह रहा है.

जस्टिस सर सैयद फजल अली- 26 जनवरी 1950 से 18 सितंबर 1951

जस्टिस गुलाम हसन- 8 सितंबर 1952 से 18 सितंबर 1951

जस्टिस सैयद जफर आलम- 18 जनवरी 1955 से 31 जनवरी 1964

जस्टिस एम हिदायतुल्ला- 12 जनवरी 1958 से 16 दिसंबर 1970,

जस्टिस एम हमीदुल्लाह बेग- 12 अक्टूबर 1971 से 21 फरवरी 1978,

जस्टिस एस मुर्तजा फजल अली- 2 अप्रैल 1975 से 20 अगस्त 1985

जस्टिस बहरुल इस्लाम- 4 दिसंबर 1980 से 12 जनवरी 1983

जस्टिस वी खालिद- 25 जून 1984 से 30 जून 1987

जस्टिस ए एम अहमदी- 14 दिसंबर 1988 से 24 मार्च 1997,

जस्टिस फातिमा बीवी- 6 अक्टूबर 1989 से 29 अप्रैल 1992

जस्टिस फैजानुद्दीन- 14 दिसंबर 1993 से 4 फरवरी 1997

जस्टिस सगीर अहमद- 6 मार्च 1995 से 30 जून 2000

जस्टिस एस एस एम कादरी- 4 दिसंबर 1997 से 4 अप्रैल 2003

जस्टिस अल्तमस कबीर- 9 सितंबर 2005 से 18 जुलाई 2013,

जस्टिस आफताब आलम- 12 नवंबर 2007 से 18 अप्रैल 2013

जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कैलीफुला- 2 अप्रैल 2012 से 22 जुलाई 2016

जस्टिस एम वाई इकबाल- 24 दिसंबर 2017 से 12 फरवरी 2016

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर- 17 फरवरी 2017 से 4 जनवरी 2023

चार मुख्य न्यायाधीश

जस्टिस सर सैयद फजल अली से लेकर जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर तक देश की सर्वोच्च अदालत में नियुक्त हुए 18 मुस्लिम जजों में से चार जज देश के मुख्य न्यायाधीश तक बने.

देश के प्रथम मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश के तौर पर जस्टिस एम हिदायतुल्ला का कार्यकाल 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक रहा. इसके बाद जस्टिस एम हमीदुल्लाह बेग 29 जनवरी 1977 से 21 फरवरी 1978 तक, जस्टिस ए एम अहमदी- 25 अक्टूबर 1994 से 24 मार्च 1997 तक और जस्टिस अल्तमस कबीर 29 सितंबर 2012 से  18 जुलाई 2013 तक देश के चौथे मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश रहें.

ऐसा भी रहा हैं समय

देश की सर्वोच्च अदालत में तीन बार ऐसा समय भी रहा है जब कार्यरत जजों में से कोई भी मुस्लिम जज नहीं था. अप्रैल 2003 से सितंबर 2005 तक तकरीबन ढाई साल ऐसा मौका रहा जब सुप्रीम कोर्ट में कोई मुस्लिम जज नहीं रहे.

दिसंबर 1988 के बाद ऐसा पहली बार हुआ था कि सर्वोच्च अदालत में कोई मुस्लिम जज नहीं था. जस्टिस एसएसएम कादरी के 4 अप्रैल 2003 को रिटायर होने के बाद 9 सितंबर 2005 को जस्टिस अल्तमस कबीर की नियुक्ति हुई थी.

30 जून 1987 को भी जस्टिस वी खालिद की सेवानिवृत्ति के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए एम अहमदी की नियुक्ति होने तक कोई मुस्लिम जज नहीं थे. जस्टिस अहमदी की नियुक्ति जस्टिस खलिद की सेवानिवृति से करीब 18 माह बाद 14 दिसंबर 1988 को हुई थी. इस 18 माह की अवधि के दौरान दौरान सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम जज का प्रतिनिधित्व नहीं था.

एक साथ चार जज

इसके विपरीत दिसंबर 2012 से अप्रैल 2013 की अवधी में सुप्रीम कोर्ट में चार मुस्लिम जज भी रहे हैं. इनमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर के अलावा जस्टिस आफताब आलम, जस्टिस इकबाल और जस्टिस कलीफुल्ला थे. 22 जुलाई 2016 से लेकर 17 फरवरी 2017 तक भी सुप्रीम कोर्ट में कोई मुस्लिम जज नहीं थे. 22 जुलाई 2016 को जस्टिस मोहम्मद फकीर सेवानिवृत हुए थे. वहीं 17 फरवरी 2017 को जस्टिस जस्टिस एस अब्दुल नजीर की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति हुई थी.

सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम जज की नियुक्ति को लेकर कभी सवाल खड़े नहीं किए गए, लेकिन इनकी नियुक्ति को लेकर जरूर एक लंबा वक्त का इंतजार किया जाता रहा. सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच कई बार जजों की नियुक्ति को लेकर गतिरोध रहना नई नियुक्ति में वक्त लगने का बड़ा कारण रहा है.