NDPS Act: आरोपी को नियमित जमानत देने में जल्दबाजी करने से बचें: Supreme Court ने आरोपी को मिली अग्रिम जमानत खारिज करते हुए निर्देश दिए
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारी मात्रा में नशीले पदार्थों पकड़े जाने से जुड़े मामलों में सुनवाई की है. सुप्रीम कोर्ट निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में जमानत (Bail) देने में जल्दबाजी न दिखाएं, बल्कि सावधानी से प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं. मद्रास हाईकोर्ट (High Court) ने उस आरोपी को अग्रिम जमानत दें दी जिसके पास वाणिज्यिक सीमा से भी बहुत अधिक मात्रा में नशीले पदार्थ मिले थें.
सुप्रीम कोर्ट ने बदला फैसला
मद्रास हाईकोर्ट के द्वारा आरोपी को मिले अग्रिम जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपराधिक अपील दायर की. जस्टिस बी.आर.गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. बेंच ने हाईकोर्ट के एकल बेंच द्वारा दिए गए अग्रिम जमानत के फैसले को खारिज किया. कारण में कहा कि अग्रिम जमानत देने के वक्त कई पहलुओं को ध्यान में नहीं रखा गया है, i) आरोपी को पहले से ही NDPS Act से जुड़े दो मुकदमे में दोषी ठहराया गया है.यानि उसका अपराधिक इतिहास है. ii) आरोपी के पास मिले नशीले पदार्थ, वाणिज्यिक मात्रा से कहीं अधिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
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“इतनी भारी मात्रा में मादक पदार्थ की बरामदगी के मामले में अदालतों को आरोपी को नियमित जमानत देने में भी धीमी गति से काम करना चाहिए. अग्रिम जमानत की बात क्या ही हो, जब आरोपी पर अपराधिक पृष्टभूमि होने का आरोप हो.”
क्या है मामला?
आरोपी 23.5 किलोग्राम गांजे की आपूर्ति/खरीद करने के दौरान पकड़ा गया. ये मादक पदार्थ तय वाणिज्यिक मात्रा से कई गुणा अधिक थे. पुलिस ने आरोपी के खिलाफ नारकोटिक ड्रग्स एण्ड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट, 1985) के तहत एफआईआर(FIR) दर्ज किया. मामले में एनडीपीएस एक्ट की धारा 8 (सी), 20 (बी) (ii) (सी) और 29 (i) के तहत अपराध पाया.
हाईकोर्ट ने दी अग्रिम जमानत
आरोपी ने एफआईआर(FIR) के खिलाफ अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में आवेदन दायर की जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी. राज्य की ओर से पेश हुए लोक अभियोजक (Public Prosecutor) ने इस जमानत का विरोध किया था. हाईकोर्ट ने आवेदन को स्वीकार करते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी है.
आरोपी की अग्रिम जमानत खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को गूढ़ और विकृत बताया. हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखने में असर्मथता जताते हुए आरोपी को दस दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के सामने सरेंडर करने के आदेश दिया है.