मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं ले सकते बच्चा गोद, JJ Act में निर्धारित निर्देशों का सख्ती से करें पालन: Odisha HC
नई दिल्ली: उड़ीसा हाईकोर्ट ने बच्चा गोद लेने से संबंधित मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि मुस्लिम अपने व्यक्तिगत कानूनों के तहत नाबालिग बच्चों को गोद लेने की मांग नहीं कर सकते हैं, उन्हें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) (जेजे एक्ट) के तहत निर्धारित निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जस्टिस सुभाशीष तालापात्रा और जस्टिस सावित्री राठो की खंडपीठ ने यह टिप्पणी (निसार अहमद खान बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य) बच्चे को गोद लेने का दावा करने वाले दंपति से नाबालिग लड़की को उसके पिता के पास बहाल करने का आदेश पारित करते हुए किया.
इस्लामिक देशों के नियम का हवाला
अदालत ने कहा कि "यह सच है कि मुसलमान बच्चे को गोद ले सकता है, लेकिन उन्हें जेजे एक्ट और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित कठोर प्रक्रिया का पालन करना होगा, लेकिन उनकी इच्छा पर नहीं. यही कारण है कि आमतौर पर इस्लामिक देशों में गोद लेने के बजाय नाबालिग को संरक्षकता प्रदान की जाती है ताकि उनकी देखभाल और सुरक्षा होती रहे. इस प्रकार, हम मानते हैं कि गोद लेने का दावा कानून में टिकाऊ नहीं है."
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याचिकाकर्ता का दावा
जानकारी के लिए आपको बता दें कि याचिकाकर्ता ने एक रिट याचिका दायर कर अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी बहाल करने की मांग अदालत से की थी. जिसमें उन्होने दावा किया है कि नाबालिग, जो वर्तमान में लगभग 12 वर्ष की है, उसे वर्ष 2015 से अवैध रूप से प्रतिवादी द्वारा कस्टडी में रखा गया है. प्रतिवादी नंबर 6, 9 और 11 क्रमशः याचिकाकर्ता की बहन, भतीजी और दामाद (भतीजी के पति) हैं.
याचिकाकर्ता के मुताबिक उसके द्वारा किए गए कई प्रयासों के बावजूद उन्हे अपनी बेटी से मिलने से मना कर दिया गया. इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस के साथ-साथ बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) को भी की, लेकिन उन अधिकारियों के तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई.
अंत में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने की प्रार्थना की, जिसमें प्रतिवादी को नाबालिग को अदालत में पेश करने और उसे अपनी बेटी की कस्टडी देने का निर्देश दिया.
सूचना के अनुसार, याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत गोद लेने की मान्यता नहीं है. यहां तक कि 'रिश्तेदारी संबंध' को भी नया और स्थायी पारिवारिक संबंध बनाने के लिए मान्यता नहीं दी जाती है.
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि किसी नाबालिग के अभिभावक को नियुक्त करने के लिए अभिभावक और वार्ड अधिनियम के तहत कोई भी शक्ति निहित नहीं है. जिसके पिता जीवित हैं और न्यायालय की राय में नाबालिग के संरक्षक होने के लिए अयोग्य नहीं है.
SC के ऐतिहासिक फैसले का उल्लेख
कोर्ट के अनुसार हिंदू कानून के विपरीत मुस्लिम कानून में बच्चे को गोद लेने की कोई प्रथा नहीं है, जिसे पक्षकारों द्वारा विधिवत स्वीकार किया गया है. अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि जेजे एक्ट [अधिनियम, 2000] की धारा 41 गोद लेने की विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करती है, जिसका उपयोग मुसलमानों द्वारा भी किया जा सकता है.
एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार अदालत ने सुनवाई के दौरान शबनम हाशमी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का भी जिक्र किया. हालांकि,अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जेजे एक्ट के तहत गोद लेने का प्राथमिक उद्देश्य है अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चों का पुनर्वास प्रदान करना है. इसके अलावा, गोद लेने के लिए कड़े दिशा निर्देश तैयार किए गए हैं.
इस एक्ट के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण के माध्यम से दत्तक ग्रहण किया जाता है. यही कारण है कि अदालत ने कहा कि मुसलमान अनाथ बच्चों को गोद ले सकते हैं, लेकिन उन्हें जेजे एक्ट और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत कठोर प्रक्रिया का पालन करना होगा.
बच्चे की कस्टडी अवैध
अदालत ने कहा कि "हमने देखा है कि गोद न लेने की स्थिति में नाबालिग बच्चे की कस्टडी को अवैध कस्टडी कहा जा सकता है". अदालत ने कहा कि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है लंबे समय से साथ रहने के कारण नाबालिग को प्रतिवादी प्रति भावनात्मक संबंध उत्पन्न हो गए हैं लेकिन याचिकाकर्ता के अधिकार और बच्चे के 'सर्वोत्तम हित' के संबंध में नाबालिग की कस्टडी याचिकाकर्ता के पास होनी चाहिए.
अदालत ने आगे कहा कि "सिर्फ इसलिए कि प्रतिवादी नंबर 6 से 11 ने कुछ समय के लिए या लंबे वक्त तक बच्चे की देखभाल की है, वे बच्चे की कस्टडी को बरकरार नहीं रख सकते. अगर याचिकाकर्ता को कस्टडी बहाल नहीं की जाती है, तो अदालत बच्चे और माता-पिता दोनों को वंचित कर देगी.