Muslim Reservation: Supreme Court ने कर्नाटक सरकार को लगाई फटकार, कहा फैसला प्रथम दृष्टया "त्रुटिपूर्ण’’
नई दिल्ली: कर्नाटक में करीब तीस साल से मुसलमानों को दिये जा रहे ओबीसी आरक्षण को अचानक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर समाप्त करने के कर्नाटक की बोम्मई सरकार के फैसले को Supreme Court ने प्रथम दृष्टया गलत बताया है.
Supreme Court मुस्लिमों के आरक्षण को समाप्त करने और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की श्रेणी में रखने के तरीके पर कड़ी आपत्ति जताई है. कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा इस मामले में निर्णय लेने की प्रक्रिया 'अस्थिर और त्रुटिपूर्ण' है.
Justice K M Joseph और Justice B V नागरत्ना की पीठ ने सरकार के फैसले पर कहा कि अदालत के सामने पेश किए गए रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि कर्नाटक सरकार का फैसला पूरी तरह से गलत धारणा’ पर आधारित है.
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सुनवाई के दौरान पर पीठ ने सरकारी आदेश जीओ पर अंतरिम रोक लगाने की बात कही, लेकिन कर्नाटक सरकार की ओर से जीओ के आधार पर 18 अप्रैल तक कोई भी प्रवेश या नियुक्ति नही दिये जाने का बयान देने के बाद कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया.
कर्नाटक सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया और पीठ को आश्वासन दिया कि 24 मार्च के सरकारी आदेश के आधार पर कोई नियुक्ति और दाखिला नहीं दिया.
वही वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के सदस्यों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने याचिकाओं पर इन वर्गो का पक्ष जाने बिना कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं करने का अनुरोध किया.
कर्नाटक सरकार द्वारा मामले में यह आश्वासन दिये जाने पर पीठ ने सरकार और वोक्कालिगा और लिंगायत को जवाब पेश करने के निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 18 अप्रैल तक के लिए टाल दी है.
ये है मामला
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई नीत कर्नाटक सरकार ने राज्य में मुसलमानों को हासिल चार फीसदी आरक्षण को हाल ही में खत्म करने का फैसला किया था. कर्नाटक सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के मुसलमानों के लिए चार फीसदी कोटा समाप्त करते हुए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की दो नयी श्रेणियों की घोषणा की.
ओबीसी मुसलमानों के चार फीसदी कोटे को वोक्कलिगा और लिंगायत समुदायों के बीच बांट दिया गया है. यही नहीं, आरक्षण के लिए पात्र मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के तहत वर्गीकृत कर दिया गया है. राज्य सरकार के फैसले के बाद अब वहां आरक्षण की सीमा करीब 57 फीसदी हो गई है.