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भारत को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए न्यूनतम अदालती हस्तक्षेप जरूरी

Indian Dispute Resolution Centre (IDRC) की वर्षगाठ पर आयोजित दूसरे आर्बिट्रेट इंडिया कॉन्क्लेव में भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गयी.

Written By Nizam Kantaliya | Published : May 15, 2023 5:48 PM IST

नई दिल्ली: Indian Dispute Resolution Centre (IDRC) की ओर से दूसरा आर्बिट्रेट इंडिया कॉन्क्लेव 2023 शनिवार को नई दिल्ली के डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर पर आयोजित किया गया.

IDRC की तीसरी वर्षगांठ पर इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीगल रिसर्च गोवा के सहयोग से आयोजित होने हुए इस दूसरे आर्बिट्रेट इंडिया कॉन्क्लेव 2023 का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस एम आर शाह ने किया.

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कॉन्क्लेव के मुख्य अतिथी और मुख्य वक्ता जस्टिस एम आर शाह ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक स्थिर विवाद समाधान प्रणाली की आवश्यकता है.

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जस्टिस शाह ने कहा कि देश में जब तक विवादों का समय पर और प्रभावी लागत से समाधान नहीं होता है, तब तक भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र नहीं बन सकता है.

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उन्होने कहा कि उन कारणों को समझने की जरूरत है जिनकी वजह से भारत इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है और फिर हमें इन क्षेत्रों पर काम करना है.

जस्टिस शाह ने कहा कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अदालतों का न्यूनतम हस्तक्षेप अनिवार्य है.

पैनल चर्चा

Arbitrate Conclave में मुख्य रूप से 'भारत में मध्यस्थता' - मेकिंग रिज़ॉल्विंग इन इंडिया ए रियलिटी' विषय पर चर्चा की गई.

पैनल डिसकशन के तौर पर भारत सरकार के 'रिज़ॉल्व इन इंडिया' के आह्वान को मज़बूत करने, भारत को अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता केंद्र के स्थापित करने और भारत को अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बनाने में आने वाली चुनौतियां और भारत में विदेशी कानून फर्मों को अनुमति देने का प्रभाव"विषय चर्चा की गयी.

आर्बिट्रेट इंडिया कॉन्क्लेव के तहत पैनल चर्चा में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस दु मल्होत्रा, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा, Shardul Amarchand Mangaldas के हैड आर्बिट्रेटर तेजस करिया और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रतन भी शामिल हुए.

विशेष बेंचो की जरूरत

पैनल चर्चा में जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने आर्बिट्रेशन के उन प्रमुख मानदंडों पर चर्चा की जो एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में एक पक्ष की मध्यस्थता तय करने के तौर देखा जाता है.

जस्टिस मल्होत्रा ​​ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के मुद्दे को भारत में संबोधित करने की आवश्यकता है, जिसे धारा 34 और धारा 37 के आवेदनों के साथ शीघ्रता से निपटने वाली विशेष बेंच बनाकर निपटा जा सकता है.

मध्यस्था शहर बनाने की जरूरत

सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हालांकि यह सच है कि मध्यस्थता पुरस्कारों के प्रवर्तन की प्रक्रिया धीमी है, पहली देरी मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने में ही है.

तुषार मेहता ने सहमति जताई कि देश में इसे बढावा देने के लिए हमें विशेष बेंचों की जरूरत है, हालांकि उन्होंने सुझाव दिया कि हमारे पास विशेष रूप से S.34 और S.37 के साथ काम करने वाले विशेष जजो के साथ अलग मध्यस्थता अदालतें होगी.

सॉलिस्टर जनरल ने कहा कि जब हम भारत के मध्यस्थता का केंद्र होने की बात करते हैं, तो हमें भारत में एक मध्यस्थता शहर होने पर ध्यान देना चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र होगा. इससे विवादों के त्वरित समाधान में मदद मिलेगी और भारत को मध्यस्थता का केंद्र बनाने में मदद मिलेगी.

विदेशी लॉ फर्मो से जुड़े युवा अधिवक्ता

बीसीआई चैयरमेन मनन कुमार मिश्रा ने विदेशी फर्मों को भारत में अपना व्यवसाय शुरू करने की अनुमति देने के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि इससे विदेशी ग्राहकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी.

मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि भारत मध्यस्थता का केंद्र नहीं बनने का एक कारण यह भी है कि हम इसे केंद्र नहीं बनने दे रहे हैं. इस डोमेन में विदेशी फर्मों का प्रवेश नहीं था जो भारत को मध्यस्थता का केंद्र बनने से रोकता था.

मिश्रा ने कहा कि जब तक युवा वकील विदेशी वकीलों और कानून फर्मों से जुड़े नहीं होंगे, हम अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र नहीं बन सकते.

अधिवक्ता तेजस ने कहा कि मध्यस्थता हमेशा एड-हॉक रही है और धीरे-धीरे हम संस्थागत मध्यस्थता की ओर बढ़ रहे हैं. लेकिन समस्या यह है कि हमारे पास एक भी प्रमुख संस्थान नहीं है जिसे भारत की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का प्रमुख संस्थान कहा जा सके.