Maoist Linkage Case: Bombay High Court ने GN Saibaba सहित 5 अन्य दोषियों को बरी किया, सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा से सुनने के दिये थे आदेश
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच (Bombay High Court, Nagpur Bench) ने बड़ा फैसला दिया है. फैसले में जीएन साईबाबा (GN Saibaba) सहित अन्य 5 आरोपियों को बरी किया है. साल, 2017 में इन सभी को सेशन कोर्ट (Session Court) ने माओवादी गुटों से जुड़े होने और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी पाया. दोषी पाते हुए उम्रकैद (Life Imprisonment) की सजा सुनाई. इस मामले में महाराष्ट्र राज्य की याचिका सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में भी लंबित है. आइये जानते हैं इस मामले का पूरा घटनाक्रम…
Session Court के फैसले को किया खारिज
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में दुबारा से इस मामले की सुनवाई हुई. जस्टिस विनय जोशी और वाल्मिकी एसए मेनेजेस की पीठ ने इस बार कोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को खारिज किया है. सेशन कोर्ट ने जीएन साईबाबा सहित अन्य 5 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
SC में राज्य की याचिका लंबित
बेंच ने इन सभी आरोपियों को 50,000 के बेल बॉन्ड पर जमानत देने की बात कहीं. सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर महाराष्ट्र राज्य की याचिका पर सुनवाई लंबित है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने तक इन आरोपियों को जमानत पर बाहर जाने की इजाजत दी है.
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पहली बार सजा को रखा था बरकरार
पहले भी, 14 अक्टूबर, 2022 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की थी. उस दौरान कोर्ट ने सेशन कोर्ट की सजा को बरकरार रखा था. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया था. दुबारा से इस मामले पर सुनवाई करने के आदेश दिए थे. दूसरी बार की सुनवाई में कोर्ट ने इन्हें आरोपों से बरी किया है. जमानत पर बाहर जाने की इजाजत भी दी है.
क्या है मामला?
54 वर्षीय जीएन साईबाबा पोलियो से ग्रसित है. वर्तमान में, कानपुर जेल में बंद हैं. सेशन कोर्ट ने मार्च, 2017 में माओवादी गुटों से जुड़े होने और देशविरोधी गतिविधियों (UAPA) में शामिल होने के आरोपों को सही पाया. सेशन कोर्ट ने पाया कि जीएन साईबाबा के पास से नक्सल साहित्य (नक्सलियों के बीच बांटने के उद्देश्य से) आदि मिले हैं.
जीएन साईबाबा ने इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को जारी रखा. हालांकि, इस याचिका पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट इस बात पर राजी हुआ कि सेशन कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की धारा 45 (1) के अनुसार केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना साईबाबा के खिलाफ आरोप तय किए थे.
हाईकोर्ट ने माना देश के विरोध में साजिश करने में शामिल रहना बड़ा अपराध है. लेकिन आरोपी को संविधान से मिले प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को दिए जाने से नकारा नहीं जा सकता है. इस बात को महाराष्ट्र राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
सुप्रीम कोर्ट में पहले जस्टिस एमआर शाह और बेला एम त्रिवेदी ने सुना. इस बेंच ने कहा कि राज्य की अनुमति नहीं होने के दोषी को आरोपों से बरी नहीं किया जा सकता है. बाद में, सुप्रीम कोर्ट में ही इस मामले को जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार ने इस मामले को सुना. बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए दोबारा से सुनवाई करने के आदेश दिए थे जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सजा से बरी किया है.