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जजों के खिलाफ आरोप लगाना और अदालत जाना अब फैशन बन गया -दिल्ली हाईकोर्ट

देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जनहित की आड़ में स्वयंभू योद्धाओं द्वारा संवैधानिक पदों पर बैठे पदधारियों की अवहेलना नहीं की जा सकती, वह भी अदालत में और बिना सतही आरोपों के आधार पर, जिनका कानून में कोई आधार या तथ्य ही नहीं हो.

Written By nizamuddin kantaliya | Published : November 16, 2022 5:50 AM IST

नई दिल्ली, देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी की हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने गत शुक्रवार  इस जनहित याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए एक लाख के जुर्माने के साथ याचिका को खारिज करने के आदेश दिए थे.

मंगलवार को इस मामले में आए विस्तृत फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा की गयी कई सख्त टिप्पणियां सामने आयी है. मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिकाए जनहित याचिका की बजाए अधिक पब्लिसिटी के उद्देश्य से दायर की गयी याचिका प्रतीत होती है.जिसमें बिना किसी तथ्यों और सामग्री के याचिका दायर करते हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश, केन्द्रीय कानून मंत्री सहित कई गणमान्य लोगों के खिलाफ निदंनीय आरोप लगाए है.

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वंचित और पीड़ित वर्ग के लिए पीआईएल

पीठ ने कहा कि जनहित याचिका को हमारे देश के करोड़ों लोग गरीबी, अज्ञानता और अशिक्षा के कारण अदालत जाने में असमर्थ हैं.समाज के वंचित और पीड़ित वर्ग के मामलों को सामने लाने और उन्हे समर्थन देने के लिए ही जनहित याचिका को शक्तिशाली उपकरण के रूप में विकसित किया गया है.

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जनहित याचिका की यह अवधारणा है कि कोई भी नागरिक शोषित और उपेक्षित व्यक्तियों की शिकायतों को दूर करने के लिए न्यायालयों से संपर्क कर सकता है, जो गरीबी, अज्ञानता और अशिक्षा के कारण अपने अधिकारों का पालन करने में असमर्थ हैं.

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ब्लैकमेल करने का टूल बन गयी याचिकाए

मुख्य न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा की  पीठ ने कहा कि जनहित याचिका के मामले में लोकस स्टैंडी के नियमों में भी ढील देकर जनहित याचिकाओं पर विचार किया जाता है, जिसका मकसद स्पष्ट है कि जिससे जनता का कोई भी सदस्य जनहित याचिका दायर कर सकता है.

पीठ ने कहा हाशिए पर खड़े और उत्पीड़ित व्यक्तियों की ओर से न्यायालय में प्रतिनिधित्व करने वाले वाले व्यक्ति का कार्यवाही के परिणाम में कोई व्यक्तिगत हित नहीं होना चाहिए.

पीठ ने बेहद सख्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि वर्तमान में देश में जनहित याचिकाओं का पब्लिसिटी करने वालों द्वारा लगातार तेजी से दुरुपयोग किया जा रहा है,जो केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए जनहित याचिका दायर करते हैं. कई बार लोगों को ब्लैकमेल करने के लिए भी याचिकाए दायर की जाती हैं.

पब्लिसिटी के लिए बढ़ रही याचिकाए

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अदालत की राय में संजीव कुमार तिवारी की याचिका केवल पब्लिसिटी प्राप्त करने के लिए दायर की गई है, रिट याचिका में दिए गए तर्कों का समर्थन करने के लिए कोई भी सामग्री नहीं है.

याचिका में ये दावा किया जाना कि देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में अनुच्छेद 124A, 124(2) और 124(3) का उल्लंघन किया गया है, इस तथ्य के पक्ष में कोई सामग्री नहीं बतायी गयी कि नियुक्ति में कैसे इन अनुच्छेदों का उल्लंघन किया गया है.

पीठ ने कहा कि इस याचिका में जिन प्रार्थनाओं का अनुरोध किया गया है, वे न केवल एक सामाजिक हितों की याचिका के आधार के खिलाफ हैं, बल्कि संवैधानिक कार्यालय की गरिमा के खिलाफ भी हैं. विशेष रूप से, जब इस तरह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है.

जजों पर आरोप लगाना अब फैशन बन गया

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से समान याचिका खारिज होने के बाद उसी मुद्दे को छिपाते हुए एक नए कारण के रूप में हाईकोर्ट के समक्ष पेश किया है, जो याचिकाकर्ता के छुपे हुए मकसद को सामने लाता है और याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल खड़े करता है. जनहित याचिकाओं में देश की अदालतों ने उदार रूख अपनाते हुए लोकस स्टैंडाई के नियम को बेहद सरल बनाया है जिससे नेक इरादे और सार्वजनिक कर्तव्यों के प्रति उत्साही नागरिकों को संवैधानिक अदालतों से संपर्क करने की अनुमति दी जा सके, लेकिन इस मामले में अदालतों को एक दुखद वास्तविकता से सामना करना पड़ता.

ये याचिका बिना किसी कारण के याचिका दायर करने का उदाहरण है जो कि अनुमानों और इच्छाधारी सोच पर आधारित है. पीठ ने कहा कि इच्छाधारी सोच विशेष रूप से, एक निषिद्ध गतिविधि नहीं है, लेकिन जब यह अदालत के समक्ष याचिका के आधार का हिस्सा बनती है, तो यह अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करती है और इस तरह के प्रयासों को खारिज करते हुए एक स्पष्ट संदेश देने की जरूरत है.

मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि देश में न्यायाधीशों के खिलाफ गंभीर और निंदनीय आरोप लगाकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाना अब फैशन बन गया है. इस तरह की तत्काल याचिकाए और कुछ नहीं, बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग मात्र हैं.

सख्त और स्पष्ट संदेश की जरूरत

फैसले का पटाक्षेप करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इस अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 124 ए, 124(2) और 124(3) का सावधानीपूर्वक अध्ययन करते हुए ये पाया हैं कि देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में संविधान के अनुच्छेद 124 के प्रावधानों का निश्चित रूप से बेहतर तरीके से पालन किया गया है.

अदालत से ऐसे मामलों में स्पष्ट संदेश होना चाहिए कि जनहित के स्वयंभू योद्धाओं द्वारा जनहित में संवैधानिक पदधारियों के पदों की अवहेलना नहीं की जा सकती, वह भी अदालत में और बिना सतही आरोपों के आधार पर, जिनका कानून में कोई आधार या तथ्य ही नहीं हो.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता संजीव कुमार तिवारी पर 1,00,000/-रुपये की कोस्ट लगाते हुए याचिका को खारिज करने के आदेश दिए है. जिसे याचिकाकर्ता को 30 दिन के भीतर Armed Forces Battle Casualties Welfare Fund‟ में जमा कराना होगा. अदालत ने 30 दिन में ये राशि जमा नहीं होने पर संबंधित एसडीएम को इस राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल करते हुए Armed Forces Battle Casualties Welfare Fund‟ में जमा कराने के आदेश दिए है.