Advertisement

गर्भाधान के अवशेषों का निपटारा कैसे करें? मद्रास HC ने जारी किए दिशानिर्देश

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि गर्भधारण के अवशेषों को किसी भी तरह पीड़िता के परिवार को नहीं सौंपा जाना चाहिए. इसके बाद अदालत ने गर्भपात के बाद भ्रूण के अवशेषों के निपटारे को लेकर दिशानिर्देश जारी किया.

Written By Satyam Kumar | Published : July 17, 2024 8:37 PM IST

Madras High Court's Guidelines On Handling Of Foetus after abortion: हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने नाबालिग के गर्भ को समाप्त करने के बाद बचे भ्रूण के रख-रखाव, संरक्षण और निपटारे को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं. अदालत ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि गर्भधारण के अवशेषों को किसी भी तरह पीड़िता के परिवार को नहीं सौंपा जाना चाहिए. मद्रास हाईकोर्ट ने गर्भपात के बाद भ्रूण के अवशेषों के निपटारे को लेकर दिशानिर्देश जारी किया. उच्च न्यायालय ने ये दिशानिर्देश तुलिर सेंटर की विद्या रेड्डी की याचिका पर जारी की.

रेड्डी ने अदालत को बताया कि गर्भपात के अवशेषों को FSL जांच के बाद कभी अदालत तो कभी पुलिस वालों को लौटा दिया जाता है और अंतत: इसे विक्टिम के परिवार को सौंप दिया जाता है.

Advertisement

मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस एन आनंद वेंकटेश और सुंदर मोहन की पीठ ने कहा कि गर्भाधान के अवशेष, जिनमें गर्भपात किया गया भ्रूण भी शामिल हो सकता है, नाबालिग पीड़िता या उसके परिवार को नहीं दिए जाने चाहिए, क्योंकि उन्हें अब फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) में संग्रहीत (Store) नहीं किया जाएगा.

Also Read

More News

पीठ ने कहा,

Advertisement

"जहां तक गर्भाधान उत्पादों के प्रबंधन के दिशा-निर्देशों का प्रश्न है, हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह कभी भी पीड़ित लड़की या उसके परिवार के हाथों में न पहुंचे."

मौजूद पक्षों ने अदालत को बताया कि भ्रूण सप्ताह से कम का है तो उसे सम्पूर्ण भ्रूण विश्लेषण के लिए FSL को भेजा जाता है. अगर भ्रूण 24 सप्ताह से ज्यादा का है, भ्रूण का फीमर बोन FSL के लिए भेजा जाता है और भ्रूण के बचे भाग को समाप्त कर दिया जाता है.

अदालत ने इस बात पर गौर किया कि अगर भ्रूण 24 सप्ताह से कम का है, तो FSL जांच के बाद उसके अवशेषों का क्या किया जाए, इसे लेकर कानून में किसी तरह का प्रावधान नहीं है.

अदालत ने जोर दिया कि इसलिए भी पीड़ित के परिवार को बचा भ्रूण सौंप दिया जाता हो.

अदालत ने कहा,

"गर्भाधान के बचे अवशेषों को हमेशा के लिए बचाकर नहीं रखा जा सकता है. इसे संग्रहण कर रखने की व्यवस्था ना तो अस्पताल, ना ही पुलिस स्टेशन और ना ही अदालतों में है. इसलिए भ्रूण के अवशेषों का मामला इधर-उधर भटकता रहता है."

अदालत ने आपत्ति जताई कि इन्हीं कारणों के चलते गर्भपात के अवशेषों को परिजनों को सौंप दिया जाता है. अदालत ने इस पर कठोरता से रोक लगाने को लेकर दिशानिर्देश जारी किए हैं, जो कि इस प्रकार है:

उन मामलों में जहां भ्रूण 24 सप्ताह से अधिक का है, केवल फीमर की हड्डी को एफएसएल विश्लेषण के लिए भेजा जाए और गर्भाधान के शेष अवशेषों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अनुमोदित बायो मेडिकल वेंडर के माध्यम से नष्ट कर दिया जाए.

सभी मामलों में (24 सप्ताह से कम के भ्रूण में भी) FSL को भेजे गए नमूने को मामले की सुनवाई होने तक ही प्रयोगशाला में रखा जाए. मामला के पूरा होने के बाद उपरोक्त विधि से उसे भी नष्ट किया जाए.

किसी परिस्थिति में भेजे गए अवशेष को पुन: अदालत को नहीं सौंपा जाना चाहिए. मामला खत्म होने पर उसे भी नष्ट कर दिया जाना चाहिए.

अदालत ने इस दिशानिर्देश को पूरे तमिलनाडु राज्य में लागू करने के आदेश दिए हैं.